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जैनधर्म का प्राण
१२६ ____ मैं यहाँ उन चौदह गुणस्थानों का वर्णन न करके संक्षेप में तीन भमिकाओं का ही परिचय दिये देता हूँ, जिनमें गुणस्थानों का समावेश हो जाता है। पहली भूमिका है बहिरात्म, जिसमें आत्मज्ञान या विवेकख्याति का उदय ही नहीं होता। दूसरी भूमिका अन्तरात्म है, जिसमें आत्मज्ञान का उदय तो होता है पर राग-द्वेष आदि क्लेश मंद होकर भी अपना प्रभाव दिखलाते रहते हैं। तीसरी भूमिका है परमात्मा । इसमें राग-द्वेष का पूर्ण उच्छेद होकर वीतरागत्व प्रकट होता है ।
लोकविद्या
लोकविद्या में लोक के स्वरूप का वर्णन है । जीव-चेतन और अजीवअचेतन या जड़ इन दो तत्त्वों का सहचार ही लोक है। चेतन-अचेतन दोनों तत्त्व न तो किसी के द्वारा कभी पैदा हुए हैं और न कभी नाश पाते हैं फिर भी स्वभाव से परिणामान्तर पाते रहते हैं। संसार काल में चेतन के ऊपर अधिक प्रभाव डालनेवाला द्रव्य एक मात्र जड़-परमाणुपुंज पुद्गल है, जो नानारूप से चेतन के संबंध में आता है और उसकी शक्तियों को मर्यादित भी करता है। चेतन तत्त्व की साहजिक और मौलिक शक्तियों ऐसी हैं जो योग्य दिशा पाकर कभी न कभी उन जड़ द्रव्यों के प्रभाव से उसे मुक्त भी कर देती हैं। जड़ और चेतन के पारस्परिक प्रभाव का क्षेत्र ही लोक है और उस प्रभाव से छुटकारा पाना ही लोकान्त है । जैन परंपरा की लोकक्षेत्र-विषयक कल्पना सांख्य-योग, पुराण
और बौद्ध आदि परंपराओं की कल्पना से अनेक अंशों में मिलती-जुलती है। __जैन परंपरा न्यायवैशेषिक की तरह परमाणुवादी है, सांख्ययोग की तरह प्रकृतिवादी नहीं है तथापि जैन परंपरा सम्मत परमाणु का स्वरूप सांख्य-परंपरा सम्मत प्रकृति के स्वरूप के साथ जैसा मिलता है वैसा न्यायवैशेषिकसम्मत परमाणु स्वरूप के साथ नहीं मिलता, क्योंकि जैन सम्मत परमाणु सांख्यसम्मत प्रकृति की तरह परिणामी है, न्यायवैशेषिक सम्मत परमाणु की तरह कूटस्थ नहीं है। इसीलिए जैसे एक ही सांख्यसंमत प्रकृति पृथ्वी, जल, तेज, वायु आदि अनेक भौतिक सृष्टियों का उपादान बनती है वैसे ही जैन सम्मत एक ही परमाणु पृथ्वी, जल, तेज आदि नानारूप में परिणत होता है। जैन परंपरा न्यायवैशेषिक की तरह यह नहीं मानती कि पार्थिव, जलीय आदि भौतिक परमाणु मूल में ही सदा भिन्न जातीय हैं। इसके सिवाय और भी एक अन्तर ध्यान देने योग्य है। वह यह कि जैनसम्मत परमाणु वैशेषिक सम्मत परमाणु की अपेक्षा इतना अधिक सूक्ष्म है कि अन्त में वह सांख्यसम्मत प्रकृति जैसा ही अव्यक्त बन जाता है । जैन
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