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सामिष-निरामिष-आहार
७३ ही हो गया था। भला ऐसा कौन होगा जो वर्तमान निरामिष भोजन की निरपवाद अवस्था में ऐसे सामिष-आहार-सूचक सूत्र बनाकर आगमों में घुसेड़ दे और अपनी परम्परा के अहिंसामूलक जीवन-व्यवहार का मखौल कराने की स्थिति जान-बूझ कर पैदा करे । सारे भारतवर्ष के जुदे-जुदे असली मानवदलों का और समय-समय पर आकर बस जानेवाले नए-नए मानवदलों का इतिहास हम देखते है तो एक बात निर्विवाद रूप से पाते हैं कि भारतवासी हर-एक धर्म-सम्प्रदाय निरामिष भोजन की ओर कुछ-न-कुछ अग्रसर हुआ है । इस इतिहास के पृष्ठ जितने पुराने उतना ही सामिष-अाहार और धर्म्य पशुवध अधिक देखने को मिलता है। ऐसी स्थिति में आगमों में आने वाले सामिष-अाहार सूचक सूत्र निग्रन्थ परम्परा के पुराने स्तर को ही सूचित करते हैं जो किसी-न-किसी तरह से श्रागमों में सुरक्षित रह गया है। केवल इस आधार से भी आगमों की प्राचीनता अनायास ही ध्यान में आती है । उत्सर्ग-अपवाद की चर्चा
हम यहाँ प्रसंग वश उत्सर्ग-अपवाद की चर्चा भी संक्षेप में कर देना चाहते हैं जिससे प्रस्तुत विषय पर कुछ प्रकाश पड़ सके । निर्ग्रन्थ-परम्परा का मुख्य लक्ष्य आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति है । उसी को सिद्ध करने के लिए उसने अहिंसा का आश्रय लिया है । पूर्ण और उच्च कोटि की अहिंसा तभी सिद्ध हो सकती है जब जीवन में कायिक-वाचिक-मानसिक असत् प्रवृत्तियों का नियंत्रण हो और सत्प्रवृत्तियों को वेग दिया जाए । तथा भौतिक सुख की लालसा घटाने के उद्देश्य से कठोर जीवन-मार्ग या इन्द्रिय-दमन मार्ग का अवलम्बन लिया जाए। इसी दृष्टि से निर्ग्रन्थ-परम्परा ने समय और तप पर अधिक भार दिया है। अहिंसालक्षी संयम
और तपोमय जीवन ही निर्ग्रन्थ परम्परा का औत्सर्गिक विधान है जो आध्यात्मिक सुख प्राप्ति की अनिवार्य गारण्टी है । पर जब कोई आध्यात्मिक धर्म समुदायगामी बनने लगता है तब अपवादों का प्रवेश अनिवार्य रूप से आवश्यक बन जाता है । अपवाद वही है जो तत्त्वतः श्रौत्सर्गिक मार्ग का पोषक ही हो, कभी घातक न बने । अापवादिक विधान की मदद से ही औत्सर्गिक मार्ग विकास कर सकता है और दोनों मिलकर ही मूल ध्येय को सिद्ध कर सकते हैं । हम व्यवहार में देखते हैं कि भोजन-पान जीवन की रक्षा और पुष्टि के लिए ही है, पर हम यह भी देखते हैं कि कभी-कभी भोजन-पान का त्याग ही जीवन को बचा लेता है। इसी तरह ऊपर-ऊपर से आपस में विरुद्ध दिखाई देनेवाले भी दो प्रकार के जीवन व्यवहार जब एक लक्षगामी हों तब वे उत्सर्ग-अपवाद की कोटि में आते हैं ।
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