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जैन धर्म और दर्शन
लिच्छिवी गण का वर्णन तो बौद्ध और जैन दोनों ग्रन्थों में आता है पर इनके युद्ध का वर्णन बौद्धग्रन्थों में नहीं आता है जब कि जैनग्रन्थों में आता है । याकोबी का यह ऐतिहासिक निष्कर्ष महावीर की जीवनी लिखने में जैसा तैसा उपयोगी नहीं है । इससे ऐतिहासिक लेखक का ध्यान इस तत्त्व की ओर भी अपने आप जाता है कि भगवान् की जीवनी लिखने में श्रागमवर्णित छोटी बड़ी सब घटनाओं की बड़ी सावधानी से जाँच करके उनका उपयोग करना चाहिए ।
महावीर की जीवनी का निरूपण करने वाले कल्पसूत्र आदि अनेक दूसरे भी ग्रन्थ हैं जिन्हें श्रद्धालु लोग अक्षरशः सच्चा मान कर सुनते आए हैं पर इनकी भी ऐतिहासिक दृष्टि से छानबीन करने पर मालूम हो जाता है कि उनमें कई बातें पीछे से औरों की देखादेखी लोकरुचि की पुष्टि के लिए जोड़ी गई हैं. । बौद्ध महायान परम्परा के महावस्तु, ललितविस्तर जैसे ग्रन्थों के साथ कल्पसूत्र की तुलना बिना किए ऐतिहासिक लेखक अपना काम ठीक तौर से नहीं कर सकता। वह जब ऐसी तुलना करता है तब उसे मालूम पड़ जाता है कि भगवान् की जीवनी में आनेवाले चौदह स्वप्नों का विस्तृत वर्णन तथा जन्मकाल में और कुमारावस्था में अनेक देवों के गमनागमन का वर्णन क्यों और कैसे काल्पनिक तथा पौराणिक है ।
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भगवान् पार्श्वनाथ का जन्मस्थान तो वाराणसी था, पर उनका भ्रमण और उपदेश-क्षेत्र दूर-दूर तक विस्तीर्ण था । इसी क्षेत्र में वैशाली नामक सुप्रसिद्ध शहर भी आता है जहाँ भगवान् महावीर जन्मे । जन्म से निर्वाण तक में भगवान् की पादचर्या से अनेक छोटे-बड़े शहर, कस्बे, गाँव, नदी, नाले, पर्वत, उपवन आदि पवित्र हुए, जिनमें से अनेकों के नाम व वर्णन श्रागमिक साहित्य में सुरक्षित हैं । अगर ऐतिहासिक जीवनी लिखनी हो तो हमारे लिए यह जरूरी हो जाता है कि हम उन सभी स्थानों का आँखों से निरीक्षण करें । महावीर के बाद ऐसे कोई असाधारण और मौलिक परिवर्तन नहीं हुए हैं जिनसे उन सब स्थानों का नामोनिशान मिट गया हो । ढाई हजार वर्षों के परिवर्तनों के बावजूद भी अनेक शहर, गाँव, नदी, नाले, पर्वत यदि आज तक उन्हीं नामों से या थोड़े बहुत भ्रष्ट नामों से पुकारे जाते हैं। जब हम महावीर की जीवनचर्या में आने वाले उन स्थानों का प्रत्यक्ष निरीक्षण करेंगे तब हमें श्रागमिक वर्णनों की सच्चाई के तारतम्य की भी एक बहुमूल्य कसौटी मिल जाएगी, जिससे हम न केवल ऐतिहासिक जीवन को ही तादृश चित्रित कर सकेंगे बल्कि अनेक उलझी गुत्थियों को भी सुलझा सकेंगे । इसलिए मेरी राय में ऐतिहासिक लेखक के लिए कम से कम भौगोलिक भाग का प्रत्यक्ष्य परिचय घूम-घूम कर करना जरूरी है ।
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