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जैन धर्म और दर्शन ( स्पर्धा में ) पड़कर सभी महापुरुषों की जीवनी लिखने वालों ने सत्यासत्य का विवेक कमोवेश रूप से खो दिया है। इसी दोष के कारण सुमेरुकम्पन का प्रसङ्ग महावीर की जीवनी में आ गया है। ___तीसरी बात देवसृष्टि की है । श्रमण-परम्परा में मानवीय चरित्र और पुरुषार्थ का ही महत्त्व है । बुद्ध की तरह महावीर का महत्त्व अपने चरित्र-शुद्धि के असाधारण पुरुषार्थ में है । पर जब शुद्ध आध्यात्मिक धर्म ने समाज का रूप धारण किया और उसमें देव-देवियों की मान्यता रखनेवाली जातियाँ दाखिल हुई तब उनके देवविषयक वहमों की तुष्टि और पुष्टि के लिए किसी-न-किसी प्रकार से मानवय जीवन में देवकृत चमत्कारों का वर्णन अनिवार्य हो गया । यही कारण है कि महावस्तु और ललितविस्तर जैसे ग्रन्थों में बुद्ध की गर्भावस्था में उनकी स्तुति करने देवगण आते हैं और लुम्बिनी-वन में (जहाँ कि बुद्ध का जन्म हुआ ) देव-देक्यिाँ जाकर पहिले से सब तैयारियाँ करती हैं । ऐसे दैवी चमत्कारों से भरे ग्रन्थों का प्रचार जिस स्थान में हो उस स्थान में रहनेवाले महावीर के अनुयायी उनकी जीवनी को बिना दैवी चमत्कारों के सुनना पसंद करें यह संभव ही नहीं है । मैं समझता हूँ इसी कारण से महावीर की सारी सहज जीवनी में देवसृष्टि की कल्पित छाँट आ गई है। __पुरानी जीवन-सामग्री का उपयोग करने में साम्प्रदायिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण में दूसरा भी एक महान फर्क है, जिसके कारण साम्प्रदायिक भाव से लिखी गई कोई भी जीवनी सार्वजनिक प्रतिष्ठा पा नहीं सकती । वह फर्क यह है कि महावीर जैसे आध्यात्मिक पुरुष के नाम पर चलने वाला सम्प्रदाय अनेक छोटे-बड़े फिरकों में स्थूल और मामूली मतभेदों को तात्त्विक और बड़ा तूल देकर बँट गया है। प्रत्येक फिरका अपनी मान्यता को पुरानी और मौलिक साबित करने के लिए उसका संबंध किसी भी तरह महावीर से जोड़ना चाहता है। फल यह होता है कि अपनी कोई मान्यता यदि किसी भी तरह से महावीर के जीवन से संबद्ध नहीं होती तो वह फिरका अपनी मान्यता के विरुद्ध जानेवाले महावीर-जीवन के उस भाग के निरूपक ग्रन्थों तक को (चाहे वह कितने ही पुराने क्यों न हों ) छोड़ देता है, जब कि दूसरे फिरके भी अपनी-अपनी मान्यता के लिए वैसी ही खींचातानी करते हैं । फल यह होता है कि जीवनी की पुरानी सामग्री का उपयोग करने में भी सारा जैन-संप्रदाय एकमत नहीं । ऐतिहासिक का प्रश्न वैसा नहीं है । उसे किसी फिरके से कोई खास नाता या बेनाता नहीं होता है। वह तटस्थ भाव से सारी जीवन-सामग्री का जीवनी लिखने में विवेक दृष्टि से उपयोग करता है। वह न तो किसी फिरके की खुशामद करता है और न किसी को नाराज करने की कोशिश
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