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________________ भगवान् महावीर का जीवन ३५ Į , हमेशा बनी हुई रहती ही है । ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका वास्तविक उत्तर बिना समझे महावीर जीवन पर कुछ सोचना लिखना या ऐसे जीवन की लेखकों से माँग करना यह निरा वार्षिक जयंती कालीन व्यसन मात्र सिद्ध होगा या पुनरावृत्ति का चक्र मात्र होगा जिससे हमें बचना चाहिए । पुराने समय से आज तक की जीवन विषयक सब पुस्तकें और छोटे-बड़े सब लेख प्रायः साम्प्रदायिक भक्तों के द्वारा ही लिखे गए हैं। जैसे राम, कृष्ण, क्राइस्ट, मुहम्मद आदि महान् पुरुषों के बारे में उस सम्प्रदाय के विद्वानों और भक्तों ने लिखा है । हाँ, कुछ थोड़े लेख और विरल पुस्तकें साम्प्रदायिक जैनेतर विद्वानों द्वारा भी लिखी हुई हैं। इन दोनों प्रकार के जीवन-लेखों में एक खास गुण है तो दूसरी खास त्रुटि भी है। खास गुण तो यह है कि साम्प्रदायिक विद्वानों और भक्तों के द्वारा जो कुछ लिखा गया है उसमें परम्परागत अनेक यथार्थ बातें भी सरलता से आ गई हैं, जैसी साम्प्रदायिक और दूरवर्ती विद्वानों के द्वारा लिखे गए जीवन-लेखों में कभी-कभी या नहीं पातीं । परन्तु त्रुटि और बड़ी भारी त्रुटि यह है कि साम्प्रदायिक विद्वानों और भक्तों का दृष्टिकोण हमेशा ऐसा रहा है कि येन केन प्रकारेण अपने इष्ट देव को सबसे ऊँचा और साधारण दिखाई देने वाला चित्रित किया जाए। सभी सम्प्रदायों में पाई जाने वाली इस अतिरंजक साम्प्रदायिक दृष्टि के कारण महावीर, मानव महावीर न रहकर कल्पित देव से बन गए हैं जैसा कि बौद्ध परम्परा में बुद्ध और पौराणिक परम्परा में राम-कृष्ण तथा किश्च्यानिटी में क्राइस्ट मानव मिट कर देव या देवांश बन गए हैं । • इस युग की खास विशेषता वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण है । विज्ञान और इतिहास सत्य के उपासक हैं । वे सत्य के सामने और सब बातों को वृथा समझते हैं । यह सत्यगवेषक वृत्ति ही विज्ञान और इतिहास की प्रतिष्ठा का धार है । इसलिए इन दोनों की लोगों के मन के ऊपर इतनी अधिक प्रभावशाली छाप पड़ी है कि वे वैज्ञानिक दृष्टि से अप्रमाणित और इतिहास से असिद्ध ऐसी किसी वस्तु को मानने के लिए तैयार नहीं । यहाँ तक कि हजारों वर्षों से चली आने वाली और मानस में स्थिर बनी हुई प्राणप्रिय मान्यताओं को भी (यदि वे विज्ञान और इतिहास से विरुद्ध हैं तो ) छोड़ने में नहीं हिचकिचाते, प्रत्युत वे ऐसा करने में अपनी कृतार्थता समझते हैं। वर्तमान युग भूतकालीन ज्ञान की विरासत को थोड़ा भी बर्बाद करना नहीं चाहता । उसके एक अंश को वह प्रमाण से भी अधिक मानता है; पर साथ ही वह उस विरासत के विज्ञान और इतिहास से सिद्ध श्रंश को एक क्षण भर के लिए भी नहीं | नए युग के इस लक्षण के कारण वस्तु-स्थिति बदल Jain Education International For Private & Personal Use Only मानने को तैयार गई है । महावीर www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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