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________________ दीर्घ तपस्वी महावीर सेवा में व्यतीत होता है। इस समय में उनके द्वारा किए गए मुख्य कामों की नामावली इस प्रकार है - (१) जाति-पाँति का तनिक भी भेद रखे बिना हर एक के लिए, शूद्रों के लिए भी, भित्तु-पद और गुरु-पद का रास्ता खुला करना । श्रेष्ठता का आधार जन्म नहीं बल्कि गुण, और गुणों में भी पवित्र जीवन की महत्ता स्थापित करना। (२) पुरुषों की तरह स्त्रियों के विकास के लिए भी पूरी स्वतन्त्रता और विद्या तथा प्राचार दोनों में स्त्रियों की पूर्ण योग्यता को मानना। उनके लिए गुरु-पद का प्राध्यात्मिक मार्ग खोल देना। (३) लोक-भाषा में तत्त्वज्ञान और प्राचार का उपदेश करके केवल विद्वद्गम्य संस्कृत भाषा का मोह घटाना और योग्य अधिकारी के लिए ज्ञान-प्राप्ति में भाषा का अन्तराय दूर करना । (४) ऐहिक और पारलौकिक सुख के लिए होने वाले यज्ञ आदि कर्मकाण्डों की अपेक्षा संयम तथा तपस्या के स्वावलंबी तथा पुरुषार्थ-प्रधान मार्ग की महत्ता स्थापित करना और अहिंसा-धर्म में प्रीति उत्पन्न करना । (५) त्याग और तपस्या के नाम पर रूढ़ शिथिलाचार के स्थान पर सच्चे त्याग और सच्ची तपस्या की प्रतिष्ठा करके भोग की जगह योग के महत्त्व का वायुमंडल चारों ओर उत्पन्न करना। श्रमण भगवान् के शिष्यों के त्यागी और गृहस्थ यह दो भाग थे । उनके त्यागी भिक्षुक शिष्य १४००० और भिक्षुक शिष्याएँ ३६००० होने का उल्लेख मिलता है। इसके सिवाय लाखों की संख्या में गृहस्थ शिष्यों के होने का भी उल्लेख है। त्यागी और गृहस्थ इन दोनों वर्गों में चारों वर्गों के स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे। इन्द्रभूति आदि ११ गणधर ब्राह्मण थे। उदायी, मेषकुमार आदि अनेक क्षत्रिय भी भगवान् के शिष्य हुए थे । शालिभद्र इत्यादि वैश्य और महतारज तथा हरिकेशी जैसे अतिशूद्र भी भगवान् की पवित्र दीक्षा का पालन कर उच्च पथ को पहुँचे थे । साध्वियों में चन्दनबाला क्षत्रिय-पुत्री थी, देवानन्दा ब्राह्मणी थीं । गृहस्थों में उनके मामा वैशालीपति चेटक, राजगृही के महाराजा श्रेणिक ( बिम्बसार ) और उनका पुत्र कोणिक (अजातशत्रु ) आदि अनेक क्षत्रिय भूपति थे । अानन्द, कामदेव आदि प्रधान दस श्रावकों में शकडाल कुम्हार जाति का था और शेष ६ वैश्य खेती और पशु-पालन पर निर्वाह करने वाले थे । ढंक कुम्हार होते हुए भी भगवान का समझदार और दृढ़ उपासक था। खन्दक, अम्बड़ आदि अनेक परिव्राजक तथा सोमील आदि अनेक विद्वान् ब्राह्मणों ने श्रमण भगवान् का अनुसरण किया था। गृहस्थ उपासिकाओं में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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