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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की विरासत बौद्ध ग्रन्थ में बतलाया है कि, वप्प नाम का शाक्य निर्ग्रन्थश्रावक था । इसी मूल सुत्त की अटकथा में वप्प को गौतम बुद्ध का चाचा कहा है। वप्प बुद्ध का समकालीन कपिलवस्तु का निवासी शाक्य था। कपिलवस्तु नेपाल की तराई में है । नीचे की ओर रावती नदी-जो बौद्ध ग्रन्थों में अचिरावती नाम से प्रसिद्ध है, जो इरावती भी कहलाती है-उसके तट पर श्रावस्ती नामक प्रसिद्ध शहर था, जो अाजकल सहटमहट कहलाता है। श्रावस्ती में पार्श्वनाथ की परंपरा का एक निर्ग्रन्थ केशी था, जो महावीर के मुख्य शिष्य गौतम से मिला था । उसी केशी ने पएसी नामक राजा को और उसके सारथि को धर्म प्राप्त कराया था। जैन आगमगत सेयविया ही बौद्ध पिटकों की सेतव्या जान पड़ती है, जो श्रावस्ती से दूर नहीं । वैशाली, जो मुजफ्फरपुर जिले का आजकल का बसाढ८ है, और क्षत्रियकुण्ड जो वासुकुण्ड कहलाता है तथा वाणिज्यग्राम, जो बनिया कहलाता है, उसमें भी पार्वापत्यिक मौजूद थे, जब कि महावीर का जीवनकाल पाता है। महावीर के माता-पिता भी पाश्र्वापत्यिक कहे गए हैं। उनके नाना चेटक तथा बड़े भाई नन्दीवर्धन आदि पाश्वापत्यिक रहे हों तो आश्चर्य नहीं। गंगा के दक्षिण राजगृही था, जो आजकल का राजगिर है। उसमें जब महावीर धर्मोपदेश करते हुए आते हैं तब तुंगियानिवासी पापित्यिक श्रावकों और पावपित्यिक थेरों के बीच हुई धर्म चर्चा की बात गौतम के द्वारा ३. एकं समयं भगवा सक्केसुं विहरति कपिलवत्थुस्मिं अथ खो वप्पो सक्को निगण्ठसावगो इ० ॥-अंगुन्तरनिकाय, चतुक्कनिपात, वग्ग ५ । The Dictionary of Pali Proper Names, Vol II, P. 832. ४. श्री नन्दलाल डे : The Geographical Dictionary of Ancient and Mediaeval India, P. 189. ५. उत्तराध्ययनसूत्र, अ० २३ । ६. रायपसेणइय (पं० बेचरदासजी संपादित), पृ० ३३० आदि । ७. देखो उपर्युक्त ग्रन्थ, पृ० २७४ । ८, ६, १० देखो-वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ६२, प्रा. विजय कल्याणसूरि कृत श्रमणभगवानमहावीर में विहारस्थलनाम-कोष; The Geographical Dictionary of Ancient and Medi. aeval India. ११. समणस्स णं भगवो महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिजसमणोवासगा यावि होत्था ।-आचारांग, २, भावचूलिका ३, सूत्र ४०१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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