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पाठकों के प्रति एक मेरी सूचना है। वह यह कि इस निबन्ध में अनेक शास्त्रीय पारिभाषिक शब्द आए हैं। खास कर अन्तिम भाग में जैन पारिभाषिक शब्द अधिक हैं, जो बहुतों को कम विदित होंगे। उनका मैंने विशेष खुलासा नहीं किया है। पर खुलासा वाले उन ग्रंथों के उपयोगी स्थल का निर्देश कर दिया है। जिससे विशेष जिज्ञासु मूलग्रंथ द्वारा ही ऐसे कठिन शब्दों का खुलासा कर सकेंगे। अगर यह संक्षिप्त निबन्ध न होकर खास पुस्तक होती तो इसमें विशेष खुलासों का भी अवकाश रहता।
इस प्रवृत्ति के लिए मुझ को उत्साहित करने वाले गुजरात पुरातत्त्व संशोधन मन्दिर के मंत्री परीख रसिकलाल छोटालाल हैं जिनके विद्याप्रेम को मैं भूल नहीं सकता।
ई० १६२२ ]
[ योगदर्शन-योगबिंदु भूमिका
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