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उपायों का वर्णन है । दूसरे पाद में क्रियायोग, श्राठ योगाङ्ग, उनके फल तथा चतुर्व्यूह' का मुख्य वर्णन है ।
तीसरे पाद में योगजन्य विभूतियों के वर्णन की प्रधानता है । और चोबे बाद में परिणामवाद के स्थापन, विज्ञानवाद के निराकरण तथा कैवल्य अवस्था के स्वरूप का वर्णन मुख्य है । महर्षि पतञ्जलि ने अपने योगशास्त्र की नींब सांख्य सिद्धान्त पर डाली है । इसलिये उसके प्रत्येक पाद के अन्त में 'योगशास्त्र सांख्यप्रवचने' इत्यादि उल्लेख मिलता है । 'सांख्यप्रवचने' इस विशेषण से यह स्पष्ट ध्वनित होता है कि सांख्य के सिवाय अन्यदर्शन के सिद्धांतों के आधार पर भी रचे हुए योगशास्त्र उस समय मौजुद थे या रचे जाते थे । इस योगशास्त्र के ऊपर अनेक छोटे बड़े टीका ग्रन्थ हैं, पर व्यासकृत भाष्य और वाचस्पतिकृत टीका से उसकी उपादेयता बहुत बढ़ गई है।
सत्र दर्शनों के अन्तिम साध्य के सम्बन्ध में विचार किया जाय तो उसके दो पक्ष दृष्टिगोचर होते हैं । प्रथम पक्ष का अन्तिम साध्य है । उसका मानना है कि मुक्ति में शाश्वत सुख नामक कोई है, उसमें जो कुछ है वह दुःख की प्रात्यन्तिक निवृत्ति ही । तिक सुखलाभको ही मोक्ष कहता है। ऐसा मोक्ष हो जानेपर दुःख की प्रात्यन्तिक निवृत्ति आप ही श्राप हो जाती है । वैशेषिक, नैयायिक 3, सांख्य, योग" और बौद्धदर्शन प्रथम पक्ष के अनुगामी हैं । वेदान्त और जैनदर्शन, दूसरे पक्ष के अनुगामी हैं ।
दूसरा पक्ष शाश्व
१ हेय, हेयहेतु, हान, हानोपाय ये चतुर्व्यूह कहलाते हैं । इनका वर्णन सूत्र १६-२६ तक में है ।
शाश्वत सुख नहीं स्वतन्त्र वस्तु नहीं
२ व्यासकृत भाष्य, वाचस्पतिकृत तत्त्ववैशारदी टीका, भोजदेवकृत राजमार्तंड, नागोलीभट्ट कृत वृत्ति, विज्ञानभिक्षु कृत वार्तिक, योगचन्द्रिका, मणिप्रभा, वालरामोदासीन कृत टिप्पण आदि ।
३ ‘तदत्यन्तविमोक्षोपवर्गः न्यायदर्शन १-१-२२ ।
४ ईश्वरकृष्णका रिका १ ।
५ उसमें हानतत्त्व मान कर दुःख के श्रात्यन्तिक नाशको ही हान कहा है । ६ बुद्ध भगवान् के तीसरे निरोध नामक आर्यसत्य का मतलब दुःख नाश
से है ।
७ वेदान्त दर्शन में ब्रह्म को सच्चिदानंदस्वरूप माना है, इसीलिये उसमें नित्यसुख की अभिव्यक्ति का नाम ही मोक्ष है ।
जैन दर्शनमें भी आत्मा को सुखस्वरूप माना है, इसलिये मोक्ष में स्वाभाविक सुख की अभिव्यक्ति ही उस दर्शन को मान्य है ।
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