SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४९ और योगप्रदीप ये दो हस्तलिखित ग्रन्थ भी हमारे देखने में आये हैं, जो पद्यबन्ध और प्रमाण में छोटे हैं। इसके सिवाय श्वेताम्बर संप्रदाय के योगविषयक ग्रन्थों का कुछ विशेष परिचय जैन ग्रन्थावलि पृ० १०६ से भी मिल सकता है। बस यहाँ तक ही में जैन योगसाहित्य समाप्त हो जाता है। ___बौद्ध सम्प्रदाय भी जैन सम्प्रदाय की तरह निवृत्ति प्रधान है। भगवान् गौतम बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त होने से पहले छह वर्ष तक मुख्यतया ध्यानद्वारा योगाभ्यास ही किया। उनके हजारों शिष्य भी उसी मार्ग पर चले। मौलिक बौद्धग्रन्थों में जैन आगमों के समान योग अर्थ में बहुधा ध्यान शब्द ही मिलता है, और उसमें ध्यान के चार भेद नजर आते हैं। उक्त चार भेद के नाम तथा भाव प्रायः वही हैं, जो जैनदर्शन तथा योगदर्शन की प्रक्रिया में हैं। बौद्ध सम्प्रदाय में समाधिराज नामक ग्रन्थ भी है । वैदिक जैन और बौद्धसंप्रदाय के योग विषयक साहित्य का हमने बहुत संक्षेप में अत्यावश्यक परिचय १. सो खो अहं ब्राह्मण विविच्चेव कामेहि विविच्च अकुसलेहि धम्मेहि सवितकं सविचारं विवेकजं पीतिसुखं पढमझानं उपसंपज विहासि; वितकविचारानं वूपसमा अज्झतं संपसादनं चेतसो एकोदिभावं अवितकं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियज्झानं उपसंपज विहासि; पीतिया च विरागा उपेक्खको च विहासि; सतो च संपजानो सुखं च कायेन पटिसंवेदेसि, यं तं अरिया श्राचिक्खन्ति-उपेक्खको सतिमा सुखविहारी ति ततियज्झानं उपसंपज विहासिं: सुखस्स च पहाना दुक्खस्स च पहाना पुब्बेव सोमनस्सदोमनस्सानं अत्थंगमा अदुक्खमसुखं उपेक्खासति पारिसुद्धिं चतुत्थज्झानं उपसंपज विहासि-मज्झिमनिकाये भयमेरवसु । ___ इन्हीं चार ध्नानों का वर्णन दीघनिकाय सामञकफलसुत्त में है। देखो प्रो. सि. वि. राजवाड़े कृत मराठी अनुवाद पृ. ७२। वही विचार प्रो. धर्मानंद कौशाम्बीलिखित बुद्धलीलासार संग्रह में है। देखो पृ. १२८ । जैनसूत्र में शुक्लध्यान के भेदों का विचार है, उसमें उक्त सवितर्क आदि चार ध्यान जैसा ही वर्णन है । देखो तत्त्वार्थ श्र०६ सू० ४१-४४। __ योगशास्त्र में संप्रज्ञात समाधि तथा समापत्तिों का वर्णन है। उसमें भी उक्त सवितर्क निर्वितर्क श्रादि ध्यान जैसा ही विचार है। पा. सू. पा. १-१७, ४२, ४३, ४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy