________________
२४८
- इसके बाद उपाध्याय-श्रीयशोविजयकृत योग ग्रन्थों पर नजर ठहरती है। उपाध्यायजी का शास्त्र ज्ञान, तर्क कौशल और योगानुभव बहुत गम्भीर था। इससे उन्होंने अध्यात्मसार, अध्यात्ममोपनिषद् तथा सटीक बत्तीस बत्तीसीयाँ योग संबन्धी विषयों पर लिखी हैं, जिनमें जैन मन्तव्यों की सूक्ष्म और रोचक मीमांसा करने के उपरान्त अन्य दर्शन और जैन दर्शन का मिलान भी किया है । इसके सिवा उन्होंने हरिभद्र सूरिकृत योग विंशिका तथा षोडशक पर टीका लिख कर प्राचीन गूढ तत्त्वोंका स्पष्ट उद्घाटन भी किया है। इतना ही करके वे सन्तुष्ट नहीं हुए, उन्होंने महर्षि पतञ्जलिकृत योग सूत्रों के उपर एक छोटी सी वृत्ति जैन प्रक्रिया के अनुसार लिखी है, इसलिये उसमें यथासंभव योग दर्शन की भित्तिस्वरूप सांख्य-प्रक्रिया का जैन प्रक्रिया के साथ मिलान भी किया है, और अनेक स्थलों में उसका सयुक्तिक प्रतिवाद भी किया है। उपाध्यायजी ने अपनी विवेचना में जो मध्यस्थता, गुणग्राहकता, सूक्ष्म समन्वय शक्ति और स्वष्टभाषिता दिखाई २ है ऐसी दूसरे प्राचार्यों में बहुत कम नजर आती है। ____एक योगसार नामक ग्रन्थ भी श्वेताम्बर साहित्य में है। कर्ताका उल्लेख उसमें नही है, पर उसके दृष्टान्त आदि वर्णन से जान पड़ता है कि हेमचन्द्राचाय के योगशास्त्र के आधार पर किसी श्वेताम्बर आचार्य के द्वारा वह रचा गया है । दिगम्बर साहित्य में ज्ञानावर्णय तो प्रसिद्ध ही है, पर ध्यानसार
१ अध्यात्मसार के योगाधिकार और ध्यानाधिकार में प्रधानतया भगवद्गीता तथा पातञ्जल सूत्र का उपयोग करके अनेक जैनप्रक्रियाप्रसिद्ध ध्यान विषयों का उक्त दोनों ग्रन्थों के साथ समन्वय किया है, जो बहुत ध्यान पूर्वक देखने योग्य है । अध्यात्मोपनिषद् के शास्त्र, ज्ञान, क्रिया और साम्य इन चारों योगों में प्रधानतया योगवासिष्ठ तथा तैत्तिरीय उपनिषद् के वाक्यों का अवतरण दे कर तात्त्विक ऐक्य बतलाया है। योगावतार बत्तीसी में खास कर पातञ्जल योग के पदार्थों का जैन प्रकिया के अनुसार स्पष्टीकरण किया है।
२ इसके लिये उनका ज्ञानसार जो उन्होंने अंतिम जीवन में लिखा मालूम होता है वह ध्यान पूर्वक देखना चाहिये। शास्त्रवार्तासमुच्चय की उनकी टीका (पृ० १०) भी देखनी आवश्यक है। ___३ इसके लिये उनके शास्त्रवार्तासमुच्चयादि ग्रन्थ ध्यानपूर्वक देखने चाहिये, और खास कर उनकी पातञ्जल सूत्रवृत्ति मनन पूर्वक देखने से हमारा कथन अक्षरशः विश्वसनीय मालूम पड़ेगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org