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________________ दृष्टान्ताभास परार्थ अनुमान प्रसङ्ग में हेत्वाभास का निरूपण बहुत प्राचीन है। कणादसूत्र ( ३.१.१५ ) और न्यायसूत्र' १. २. ४-६) में वह स्पष्ट एवं विस्तृत है । पर दृष्टान्ताभास का निरूपण उतना प्राचीन नहीं जान पड़ता। अगर दृष्टान्ताभास का विचार भी हेत्वाभास जितना ही पुरातन होता तो उसका सूचन कणाद या न्यायसूत्र में थोड़ा बहुत जरूर पाया जाता । जो कुछ हो इतना तो. निश्चित है कि हेत्वाभास की कल्पना के ऊपर से ही पीछे से कभी दृष्टान्ताभास, पक्षाभास श्रादि की कल्पना हुई और उनका निरूपण होने लगा। यह निरूपण पहिले वैदिक तार्किकों ने शुरू किया या बौद्ध तार्किकों ने, इस विषय में अभी कुछ भी निश्चित कहा नहीं जा सकता। दिङनाग़ के माने जानेवाले न्यायप्रदेश में पाँच साधर्म्य और पाँच वैधर्म्य ऐसे दस दृष्टान्ताभास हैं । यद्यपि मुख्यतया पाँच-पाँच ऐसे दो विभाग उसमें हैं तथापि उभयासिद्ध नामक दृष्टान्ताभास के अवान्तर दो प्रकार भी उसमें किये गए हैं 'जिससे वस्तुतः न्यायप्रवेश के अनुसार छः साधर्म्य दृष्टान्ताभास और छः वैधर्म्य दृष्टान्ताभास फलित होते हैं । प्रशस्तपाद ने भी इन्हीं छः-छः साधर्म्य एवं वैधर्म्य दृष्टान्तााभासों का निरूपण किया है । न्यायप्रवेश और प्ररास्तपाद के निरूपण में उदाहरण और भाव एक से ही हैं अलबत्ता दोनों के नामकरण में अन्तर अवश्य है। प्रशस्तपाद दृष्टान्ताभास शब्द के बदले निदर्शनाभास शब्द का १ 'दृष्टान्ताभासो द्विविधः साधर्येण वैधम्र्येण च......तत्र साधर्म्यण... तद्यथा साधनधर्मासिद्धः साध्यधर्मासिद्धः उभयधर्मासिद्धः अनन्वयः विपरीतान्वयश्चेति ।.....वैधये॒णापि दृष्टान्ताभासः पञ्चप्रकारः तद्यथा साध्याव्यावृत्तः साधनाव्यावृत्तः उभयाव्यावृत्तः अव्यतिरेकः विपरीतव्यतिरेकश्चेति............।' -न्यायप्र० पृ० ५-६ । २ 'अनेन निदर्शनाभासा निरस्ता भवन्ति । तद्यथा नित्यः शब्दोऽमूर्तत्वात् . यदमूर्तं दृष्टं तन्नित्यम् यथा परमाणुर्यथा कर्म यथा स्थाली यथा तमः अम्बरवदिति यद् द्रव्यं तत् क्रियावद् दृष्टमिति च लिङ्गानुमेयोभयाश्रयासिद्धाननुगतविपरीतानुगताः साधनिदर्शनाभासाः। यदनित्य तन्मूत दृष्टं यथा कर्म यथा परमाणुर्यथाकाशं यथा तमः घटवत् यन्निष्क्रियं तदद्रव्य चेति लिङ्गानुमेयोभयाव्यावृत्ताश्रयासिद्धाव्यावृत्तविपरीतव्यावृत्ता वैधय॑निदर्शनाभासा इति ।'-प्रशस्त० पृ० २४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002661
Book TitleDarshan aur Chintan Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherSukhlalji Sanman Samiti Ahmedabad
Publication Year1957
Total Pages950
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size16 MB
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