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वैदिक परम्परामैसे, जहाँ तक मालूम है, सबसे पहिले वाचस्पति मिश्र और जयन्तने उस बौद्धोद्भावित अर्थक्रियाकारित्व की कसौटीका, प्रतिवाद किया। यद्यपि वाचस्पति और जयन्त दोनोंका लक्ष्य एक ही है और वह यह कि अक्षणिक एवं नित्य वस्तु सिद्ध करना, तो भी उन्होंने अर्थक्रियाकारित्व जिसे बौद्धोंने केवलनित्यपक्षमें असम्भव बतलाया था उसका बौद्ध-सम्मत क्षणिकपक्षमें असम्भव बतलाते हुए भिन्न-भिन्न विचारसरणीका अनुसरण किया है। वाचस्पतिने सापेक्षत्व-अनपेक्षत्वका विकल्प करके क्षणिक अर्थक्रियाकारित्वका असम्भव साबित किया (तात्पर्य० पृ० ३५४-६), तो जयन्तने बौद्ध स्वीकृत क्रमयोगपद्यके विकल्पजालको ही लेकर बौद्धवादका खण्डन किया-(न्यायम० पृ० ४५३, ४६४ )। भदन्त योगसेनने भी, जिनका पूर्वपक्षी रूप से निर्देश कमलशीलने तत्वसंग्रहपंजिकामें किया है, बौद्धसम्मत क्षणिकत्ववादके विरुद्ध जो विकल्पजाल रचा है उसमें भी बौद्धस्वीकृत क्रमयोगपद्यविकल्पचक्रको ही बौद्धोंके विरुद्ध चलाया है (तत्वसं० का० ४२८ से)। यद्यपि भदन्त विशेषण होनेसे योगसेनके बौद्ध होनेकी सम्भावना की जाती है तथापि जहाँ तक बौद्ध परंपरामें नित्यत्व-स्थिरवाद पोषक पक्षके अस्तित्वका प्रामाणिक पता न चले तब तक यही कल्पना ठीक होगी कि शायद वह जैन, आजीवक या सांख्यपरिव्राजक हो । जो कुछ हो यह तो निश्चित ही है कि बौद्धोंकी अर्थक्रियाकारित्ववाली तार्किक कसोटीको लेकर ही बौद्धसम्मत क्षणिकत्ववादका खण्डन नित्यवादी वैदिक विद्वानोंने किया।
क्षणिकत्ववादके दूसरे प्रबल प्रतिवादी जैन रहे। उन्होंने भी तर्कयुगमैं क्षणिकत्वका निरास उसा अर्थक्रियाकारित्ववाली बौद्धोद्भावित तार्किक कसोटाका लेकर ही किया । जहाँ तक मालूम है जैन परंपरामें सबसे पहिले इस कसोटाके द्वारा क्षाणकत्वका निरास करनेवाले अकलङ्क हैं। उन्होंने उस कसौटीके द्वारा वैदिकसम्मत केवल नित्यत्ववादका खण्डन तो वैसे ही किया जैसा बौद्धोने। और उसी कसौटीके द्वारा क्षणिकत्ववादका खण्डन भी वैसे ही किया जैसा भदन्त योगसेन और जयन्तने किया है। यह बात स्मरण रखने योग्य है कि नित्यत्व या क्षणिकत्वादि वादोंके खण्डन-मण्डनमें विविध विकल्पके साथ अर्थक्रियाकारित्व की कसौटीका प्रवेश तकयुगमें हुआ तब भी उक्त वादोंके
१ 'अर्थक्रिया न युज्येत नित्यक्षणिकपक्षयोः । क्रमाक्रमाभ्यां भावानां सा लक्षणतया मता ॥'-लघी० २.१ ।
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