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शीलोपदेशमाला-बालावबोध
५. संधि नअर्थक न (सामान्य) अने म (आज्ञार्थ रचनामां) पछी आ थी शरू थतु क्रियारूप आवतां केटीक वार अ+आ नी संधि थईने आ परिणम्यो छे :
नावलं, नावइ, नापलं, नापइ, नादरलं, नाचरोइ मापिजो, माणेसि, मावेसि
६. निपातो -नइ, -न
संबधक भूतकृदंत -ई प्रत्ययान्त छे, पण केटलीक वार ते रूपने -नइ लगाडीने विस्तरण कराय छे. ते ज प्रमाणे आज्ञार्थना रूपने अनुरोधदर्शक -न के -नह:
सबंधक भू. कृ. जोईनइ, हसोनइ, करीनई, विचारीनइ वगेरे . आज्ञार्थः कहि-न, कहि-नइ, जोइ-न, जोउ-नइ,
नामिक अंग अने अनुगनी वच्चे जि अनेछ मुकाय छे :
शील जि नउं महातम्य, कर्म जि नउं फल, नाद जि नइ विषड, धर्म जि नइ विषइ, हाथ जि माहि, जगाविवा जि भणी, सार-इ-नउ संदेह, प्राण-इ-पाहइ.
७. पर्याय-समास एक स्वीकृत शब्द (संस्कृतमाथी के फारसीमांथी) अने बोजो तेना समानाथर्क के तदेवार्थक चालु वपराशनो शब्द-ए बेना समासनां थोडांक उदाहरण मळे छे. उच्च शलीना पण अजाण्या शब्दनो प्रयोग चालु शब्दथी समजाववानी वृत्तिमांथी तथा व्याख्यानशैलीमांथी (के क्वचित अनुवाद-प्रवृत्तिमांथी) आ वलण उद्भबे छे. अन्य अर्वाचीन भारतीयआर्य भाषाओमां पण आ प्रकारना समस्त शब्दो मळे छे. कागळपत्र, मालसामान, धनदोलत वगेरे अर्वाचीन गुजरातीमां वपराय छे.
आ उपरांत चालु वपराशना समानार्थे के लगभग समानार्थक शब्दोना समासनां पण बेचार उदाहरण मळे छे.
श्रीफळ-बीलउं, खग-पांखीउ, शिवा-फेकारी, सीमा-सेढउ, उद्यान-वन, कपिवानर, वस्तु-भांड, जाण-वेत्ता, पति-भर्तार, उचित-योग्य, मान-अहंकार, सम-शपथ, प्रभातइ-सवारइ, गरहीती-निंदीती, हीन-दयामणउ, सारणा-वारणा, काज-काम, ग्वाही-साखीआ.
८. आख्यातिक समास आमां परस्पर संकलायेला अर्थ वाळा बे क्रियारूप संयुक्तरूपे वपरायेलां होय छे. उदाहरणोः
हस्तींद्रइ कांइ चेयइ-वेयइ नही; नलराजा कांइ चेयइ-वेयइ नही; जाइ-आवइ, जईइ-आवीइ,भणती-गुणतो, गरहीती-निंदीती, सूतां-बइसतां, हीडता-फिरतां, लालिउपालिउ, दीठी-सांभली. छूटो प्रयोग पण बोलइ नही, चालइ नहीं एवो मळे छे.
एक रचनामां वरि अने भलउ एकार्थक साथे वपराया छे, तेमां बरि थी, शरू थती पर्व प्रचलित रचना अने अंते भलउ वाळी नवी रचना-ए बेनो संकर थयेलो छ :
वरि अजायउ पुत्र भलउ. ते ज प्रमाणे त्रिहु त्रिभुवन एवा प्रयोगमां त्रि बेवडायो छे.
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