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________________ १५४ सुन्दर गणि-विरचित हिवt ए स्त्रीनउं स्वरूप जणावतउ कहइ धरा व कायरा वा नारी मुद्धा व बुद्धिमं वा । रत्ता व विरत्ता वा सरला कुडिला व नो जाणे ॥८२ व्याख्या:- ए स्त्रीनइ कोई इम जाणी न सकइ जु, 'ए स्त्री धीर=साहसवंति छइ १ किंवा कायर = चीहकणि छइ ? कि ए स्त्री मूधी = भोली छइ ? कि ए बुद्धिवंत छइ ? कि ए राती = सानुरागि छ ? कि ए विरति छइ ? कि ए सरल स्वभावनी छइ ? किंवा ए कुटिल स्वभावनी= उन्मार्ग चारिणी छ ?' इत्यादि बोले स्त्रीनउं स्वरूप को जाणी न सकइ । सामान्य मनुष्यन सिउं कहीइ १ जे महा-बुद्धिवंत हुई, तेह इ ए स्त्रीनां चरित्र जाणी न सकइ । ते स्वरूप कहइ नियमइ-माहप्पेणं जे सयलं तिहुयणं परिकलंति । नारी चरिअ - विआरे ते वि हु मूढ व्व मूअ व्व ॥ ८३ व्याख्या : - - जे पुरुष महा बुद्धिवंत हुइ, आपणी बुद्धिनइ महातमि करी त्रिहु त्रिभुवनमाहि ज्ञान-विज्ञानादिक सहू जाणई, एहवा जे पुरुष, ते पणि नारी=स्त्रीना चरित्र = कुटिलपणउं इत्यादि कारणे नारीना चरित्रनई विषइ = विचारिते पुरुष मुखि बोलिदा मूक = बोबडा हुई, स्त्रीना चरित्र लखी न सकई, अनइ बोबडानी परिर्इं जाणताई हूंता पणि जीभइ कही न सकई, किसइ कारणि । हिवइ ए स्त्रीनां चरित्र जाणीइं नही ते कारण कहइ - Jain Education International अन्नं रमइ निरिक्खर अन्नं चिंतेइ भासए अन्न । अन्नरस देइ दोस कवड- कुडी कामिणी विअडा ॥८४ व्याख्याः - - ए नारी अनेरा साथि रमइ = क्रीडा करइ, अनेरानइ निरखइ = जोइ, अनेरउ कोई पुरुष चित्त-माहि चींतवइ, अनइ अनेरानइ मुखि श्रृंगारवचने करी हासपूर्वक बोलावइ । अनेरा दुःशीलादिक पुरुष, दोष' अनेरानउ अनुरक्त पुरुषनई दिइ, अनइ अनेशनइ अणहूंतउ दोष चडाव = कलंक दिइ । ईणि कारणि ए कामिनी=स्त्री महाविकट=वांकी | अनइ वली कूडकपट= वंच-द्रोह तेहनी कुटीगृह | जेवलां सर्व कपट, तेतलां समस्त ए कामिनी स्त्री-माहि हुई । हिवइ अनुरक्त इ स्त्रीनउ वेसास न करिवउ ते कहइ - जत्थाणुरत्त-चित्ता सुर-धण देसाइअं पि छड्डेइ । तं पहु खिवेइ दुक्खे महिला मिंठस्स निव-भज्जा ॥ ८५ व्याख्या : - जि पुरुषनइ विषइ अनुरक्तचित्त हुइ, रागसुख-परवशि महिला कामसुख-भणी, सुह कही राज्यादिक सुख, धनं कहीइ सुवर्ण-मणि माणिक्यादिक, देन कही स्थानकादिक, आदि शब्द तु मातृकुल- पितृकुल-स्वसुरकुल, परिवार समस्त ए छांडइ = मेल्ही जाइ । जे पुरुष साथि लुब्ध हुंती ए सर्व मेल्हइ, निदानि ते पुरुषनइ पणि महा - दुःख माहि पाडइ । ते स्त्रीन क्रिसिङ वेसास १ तेह - ऊपरि किसिउ मोह ? राणीनी परिडं, जिम नृप=राजानी कामिनी = कलत्र मेंठ पडतार, तेहसिउं अनुरक्त हूंती अनइ पछइ ते पउंचार एवडइ दुक्ख पाडिउ । इहां नूपुरपड़िता, राणी अनइ पउंचार ए त्रिहुँनो कथा जाणिवी । ते कथा आगइ कही छह, तिहां हूंती जाणिवी । १. A.B. सदोष अनेरा अनुरक्त पुरुष नं दिइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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