SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शीलोपदेशमाला-बालापबोध १५१ व्याख्या:-एवं ईणइ प्रकारे, जेहे जीवे शीलनी पालना कीधी, ते जीवनइ इह-लोकि परलोकि सुख-यशादि फलनी प्राप्ति हुई। अनइ जेहे शीलनी विराधना कीधी, ते जीवनइ अयश= अपकीर्ति, नरकादि फल हुआ। एह-भणी शील-आराधन-विराधन-लगइ सुख-दुखनउं फल जाणी, भो भविक-लोको ! शील पालता द.ला म होज्यो । हिव शील-पालणहार पुरुषे नारीनउ संग वर्जिवउ ते कहइ बभव्वय धारीणं नारी-संगो अणत्थ-पत्थारी । मूसाण व मंजारी इयं निसिद्धं च सुत्ते वि ॥ ६८ व्याख्या :-जे पुरुषनइ स्वदार-संतोष, परदार-परिहार हुइ अनइ जे स्त्रीनइ परपुरुषनउ परिहार हुइ ते शीलवत कहीइ । अनइ जे सर्वथा मैथुननउ त्याग, ते ब्रह्मवत कही । ते ब्रह्मव्रतधारी-नइ नारीनउ संग अनर्थनई हेति हुइ, ऊंदिरनइ दृष्टांति । जिम ऊंदिर चिलाईनइ संगि विणास पामइ, तिम स्त्रीनउ संग ब्रह्मत्रतधारीनई विणास ऊपजावइ । वली एह जि कहई - विभूसा इत्थि संसग्गी पणीयं रस भोअणं नरस्सऽत्त-गवेसिस्स विसं तालउड जहा ॥६९ व्याख्या:-आत्मगवेषी तत्ववेत्ता जे पुरुष हुइ, तेहनइ ए विभूषादिक सर्व तालपुट विष-समान जाणिव उ। हिवइ ते विभूषा सिउं कहीइ ? जे सयरनी शोभा-भणी नख समारीइ, अलंकारन पहिरव, तांबूलादिक शोभा । अनइ स्त्रीनउ संसर्ग एकत्र निवास । प्रणीत सरस आहार-रसभोजन, विगइन सेविवउं। जिम तालपुट विष तत्काल प्राणनइ अपहारक, तिम शीलवंतनइ विभूषादिक तालपुट विष-समान जाणिवउं । हिव वली सिद्धांतनउं उदाहरण कहइ जहा कुक्कुड-पोयस्स निञ्च कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स इत्थी-विगाहओ भयं ।। ७० व्याख्या:--जिम कूडाना बालकनइ कुलल कहीइ बिडालानउ भय सदाइ हुइ, तिम ब्रह्मचारीनइ स्त्रीना विग्रह कहीइ डील-थकी भय ऊपजइ । स्त्री नइ पुरुषना संग-लगइ विणास इ ऊपजइ। एह-भणी परस्परिई संग वर्जिवउ। यतः-- स्मृता भवति तापाय दृष्टा तून्माद-कारिणी। रपृष्टा भवति मोहाय केनेयं निर्मिता वशा ।। १ ।। अग्निकुंड-समा नारी घृतकुंभ-समो नरः । एक-संग-प्रसंगेण द्रवो भवति नान्यथा ॥ २ ॥ वली स्त्रीनउं रूप वर्जिवउं ते कहइ - चित्त-भित्तिं न निज्झाए नारिं वा सुअलंकिय । भक्खरं पिव दळूणं दिहिँ पडिसमाहरे ॥ ७१ ब्याख्याः -भीतिनां लिख्यां रूप न ध्याईइन जोईइ, अनइ नारी भला अलंकार, भलां वस्त्र पहिरे रूप जोइवउं नहीं । जिम भास्कर सूर्य देखी दृष्टि वालीइ, तिम स्त्री देखी दृष्टि पाछी वालियइ । हिवइ जे काम-लोचना-स्त्रीनउ संसर्ग ब्रह्मचारीइ वर्जिवउ एहनउं किसिउं करिव १ पणि जे एहवीइ स्त्री हुइ तेहनउ इ संग वर्जिवउ ते कहइ छइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy