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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध १४९ तीणा सुरंगइ धनंजय जाइ-आवइ । किवारई राणी धनंजयनइ घरि आवइ । इम केतलउ-एक काल अतिक्रमिट । एकदा राणी धनंजयनइ घरि गउखि बइठी क्रीडा करइ छ। इसिइ राजा रइवाडीइ नीकलिउ । तेतलइ राजाइते दत्तनी पुत्री क्रीडा करती दीठी। तिसिइंतीणी राणीइ पणि विचक्षणपणा-लगई ते राजानउ अभिप्राय जाणिउ । पछइ तत्काल ते सुरंगनी वाटइ थई आपणइ घरि आवी। तेतलइ राजा पणि साशंक ऊतावलउ आवी जिम आवास-ऊपरि चडिउ, तिम आगलि राणी देखी राजा हर्षिउ । हिव अन्यदा राजाई नाटक एक मंडाविउ । तिहां गंधर्व गीत-गान करिवा लागा । तिसिइं ते दत्तनी सुता तिहां जोवा आवी । ते देखी राजानइ मनि क्षोभ हउ । पछई सभा विसर्जी राजा आवास-माहि आविउ । जउ ओइ, तउ ते राणी घूर्माती, बगाई खाती दीठी। ते देखी राजानइ मनि शंका ऊतरी । इम राजा राणी-सहित सुखिइं काल अतिक्रमावइ छ । एहवइ वसंत-समय आविउ जाणी राजा राणी-सहित पौरलोके परवरिउ वन-माहि क्रीडा करिवा-भणी गयउ । तिहां घणी क्रीडा करी, रात्रिइं तेह जि वन-माहि वेलिना मांडवा-तलइ सुतां । तेतलइ अकस्मात राणीनइ सापनउ डंस हूउ। पछइ राणी पोकार करती आगी, अचेत होइवा लागी। इसिइं राजाइ मंत्रवादी बोलाव्या । जेललइ मंत्रवादी आवई, तेतलइ राणी अचेत थई भुई पडी । जेतला उपचार हूंता, तेतला सर्व गारुडीए कीधा, पणि सर्व निःफल हुआ। पछइ. राजा धोरिमा मूकी रोवा लागउ। तिवारइ आपणउं राज तृण-समान गणतउ ते राणी साथि काष्ट भक्षण करिवानइ सावधान हउ । तिसिई घणउं इ प्रधान राखई, पणि रहइ नहीं । पछइ नगर-बाहिरि चिहि कीधी । जिवारइ राजा राणी-साथि तिहां आविउ, तिवारइ सर्व लोक विलाप करिवा लागा । एहबइ नंदीश्वरि यात्रा-भणी विद्याधर एक जातउ हूंतउ । तीणइ ते राजानु मरण सांभली दया-लगइ पाणी अभिमत्र जेतलइ राणी छांटो, तेतलइ विष गयउं। राणी सचेत थई । गजा हर्षिउ । समस्त नगरलोक पणि हा । महा-वाजित्र वाजिवा लागो । पछई राजाई ते विद्याघरेश्वरनइ बहुमान-पूर्वक विसर्जिउ । हिव ते रात्रि तेह जि वन माहि रह्या । तिसिई धनंजय पणि रात्रिई तिहां आविउ । कांई, जिहां आपणउं मन तिहां अलगू इ इकडम् । तिवारई राणी धनंजय-कन्हलि आवीनइ कहइ, 'आवउ, आपणपे देशांतरि जईइ । इहां आपणपानइ केहउं सुख ?' तिवारइ धनंजय कहइ, 'अरे मुग्धि ! ए कूडी विमासण म करि । ए राजा जीवतई तुझनई लेई जातां माहर: माउं इ आइ ।' तिवारइ वली राणी कहइ, 'प्राणनाथ ! ए राजा जीवतां आपणपे निस्संक सुख भोगवी नही सकीइ । तेह-भणी हूं राजानई मारी आवउं छउं । पठइ तूं राजा अनइ हूं राणी।' तु ओउ संसारनी गति । एक ए योषिता किस्यां किस्यां वानां न करइ १ यत : __ कवयः किं न कुर्वन्ति, किं न कुर्वन्ति योषितः ।। मद्यपाः किं न जल्पन्ति, किं न भक्षन्ति वायसाः ॥१॥ ते राणी इम कही जिहां राजा सूतउ छइ तिहां आवी, राजानु खड्ग लेई, जेतलइ प्रहार करइ, तेतलइ धनंजय आबी, हाथ-हूंतउ खड्ग लेई मन-माहि इसिउं चींतविवा लागउ, 'जोउ, जीगई राजाई ए पट्टराणी कीधी, वली जेहनइ स्नेहि करी राजा काष्ट-भक्षण करतउ 'तउ, जेहनइ प्रसादि एवडा सुख भोगव्यां, तेहनइ जउ ए आपणी नथी हुई, तु ए मूहनई आपणी किम होसिइं? आते दिहाडे मुझनइ पणि ए प्रकार होसिइ । तु माहरइ ईणइ संबंधि करी सरिउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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