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शीलोपदेशमाला-बालावबोध पछइ मुनि घणइ आग्रहि फासू जाणी विहरवा आविउ । हिव मागधिकाइ पूर्विइ नेपालगोटे मिश्रित मोदक करी मूक्या छई। तेह्वा ते मोदक विहराव्या । पछ। मुनि एकांति जई जेतलइ
कीघउं. तेतलह 'विरेच लागउ । तीणइ अतीसारि करी रात्रि मोटइ कष्टि गई। तेतलाई प्रभाति मागधिका आवी कहइ, 'ए दोष मुजकृत हूउ ।' इम कहती सारशुद्धि करिवा लागी । वली कहइ, 'अम्हारउ चालणउ रहि । कांई ? मुनिनइ ए अवस्था हुई हूं किम छांडी जाउं ?' पछइ अंगनी संवाहनां करिवा लागी । इम संकटि पाडी हावभावे करी तिम-किमह मुनि भोलविउ, जिम भर्तार-भार्यानउ संबंध हउ । जोउ मोहन विलसित । जिम क्रीडामर्कट दोरीइ बांघिउ भावइ तिहां लीजइ, तिम ते कुलवालूउ मुनि मागधिका वेश्याई कोणिककन्हलि आणिउ । पछइ राजानइ कहइ, 'ए कूलवालूउ मइ पति करी आणिउ छइ ।' तिसिह राजा क्लवालू आनइ कहइ 'अहो मुनि ! तिम करि जिम ए विशाला लेवराइ ।'
पछइ मुनि विशाला-माहि जई नगरना चरित्र जोइवा लागउ । जु जोइ तु नगर-माहि राजानइ सबलाई कांई नथी । पणि श्री-मुनिसुव्रतस्वामिना स्तूपनी सबलाइ दीठी । ते थूभनी प्रतिष्टा मूल पुष्पार्कि मोटइ योगि हुई छ। तिणि करी जउ इंद्र आवइ तु ही ए नगरीन लेवराइ । एहवउं कारण जाणी कांई विचारइ तेतलइ नगरना लोक, राजा सहू आवी मुनि-कन्हलि पूछइ, 'अहो! अजी विग्रह केतलाएक दिन होसिइ ?' तिवारइ मुनि कहई, 'जां नगर-माहिए स्तूप छइ, "तां-लगइ गढ-रोहउ होसिइ ।' कहिउं, 'जु ए खणी लांखउ, तु हिवडां इ गढ-रोहउ भाजइ । तेतलइ लोक कुसि-कुदाला लेई थूभ खणिवा लागा । कहउ, धूर्तिइ कउण-एक भोलवीइ नहीं ? पछइ तीणइ कोणिकनइ इसिउं जणाविउजु, 'तूं कटक लेई कोस बि अलगउ जाए, जिम एहनइ प्रत्यय ऊपजइ ।' पछइ कोणिक बि-कोस ताइ पाछउ गयउ । तिवारइ लोके साचउ प्रत्यय जाणी स्तूप मूल-हूंतउ खणी नांखिउ । तिसिइं अधिष्टायक नगरनइ छोडी. गया । पछइ बारमा बरसनइ अंति कोणिकइ विशाला नगरी लीधी। तीणी वेलाइ जे संग्राम हउ ते संग्राम ईणइ उत्सर्पिणीइ न हुत उ हूउं। पछइ कोणिकि चेडानइ नीकलीनइ कहिउं, 'हे नाना ! हिव तूं जि काई कहइ ते हूं करउ !' तिवारइ चेडउ कहइ, 'जेतलइ हूं वाविई स्नान करी आवर्ड, तेतलइ त् नगर-माहि मावेसि ।' इम कही पछइ चेडइ राजाई स्नान करी आपणइ कंठि प्रतिमा बांधी जेतलइ वावि-माहि झांप दीधी तेतलई धरणे द्रई आवी, चेडाराजानइ साहम्मी-भणी लेई, आपणइ स्थानकि गयउ ।
तिहां चेडउ राजा अणसण लेई, आराधना-पूर्वक मरण पामी, आठमइ सहस्त्रार देवलोकि देव हउ। एहवइ चेडारायनउ दोहीत्रु सुजेष्टानु पुत्र सत्यकी एहवइ नामि विद्याधर छइ । तिणी आवी ते विशालानउ सर्व लोक नीलवति पर्वति लीधउ । पछइ कोणिकि नगरी-माहि जई, हलि शसभ जोतरावी. विशालानी भूमिका खेडी, कउडां वावी प्रतिज्ञा पूरी कीधी । पछइ अशोकचंद्र राजा आपणई नगरि पाछउ आविउ । अनइ कूलवालूउ ऋषि मागधिका वेश्यानइ संगि शीलमी खडना करी अनेक भव संसार-माहि मिउ ।
इति श्री शीलोपदेशमाला-बालाविबोधि कूलवालूआनी कथा ॥३६॥
हिवइ तु (जु) विषय-सुखरसिक जीव, तेहनइ तप इ निरर्थक, ते कहइ - १. K. रेच २ C.L. चलाण, K. चालिवउ । ३. Pu. अवस्था हुई केम । ४. K. तां-लगइ ए विग्रह नहीं भाजइ । तेतलइ लोक कुसि.........
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