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________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध १३७ व्याख्या :--शीलना भंग-लगई जीव इह-लोकि बंधन-रांदु-लोहना-बंधन इत्यादि पाम। छेदन कर्ण-नासिकादि, ताडन शस्त्रि करी, मारण लकुटादिके, खङ्गादिके करी, प्रमुख बीजी इ नानाविध कदर्थना सहावीइ । वली इहलोकि अयश-अपकीर्ति एवमादिक प्रकार लहइ । अनइ मूआ पूठिइ परलोकि दालिद्र हुइ । क्षुद्र व्याधि, अल्पायु, कुरूपता, वामणा, कूबडा, टूटा, पांगुला, अशुभ 'नपुंसका, नरक, तिर्यंचादि-गति-प्रमुख अनेक कष्ट व्यसन लहइयामइ । जोड, शील-भगइ इह-लोकि पर-लोकि एवडा कष्ट भोगवीइ २ । हिव शील-भ्रष्ट कूलवालूआनउ दृष्टांतपूर्वक फल कहइ-- निरुवम-तव-गुण-रंजिय सुरो पि सो कूलवालुओ साहू। मागहिया-संगाओ गलिय-वओ पाविओ कु-गई ॥६३ व्याख्याः -निरुपम असामान्य जे तपगुण, तिणि करी रंजव्या सुर-देवता जीणइ इसिउ, ते कुलवालूउ मुनि मागधिका गणिकाना संसर्ग-लगइ गलित-व्रत भग्नशीलवत हउ । इह-लोकि पतित हूउ अनइ परलोकि नरकादि कुगति पामो । एतलइ गाथानउ अर्थ हूउ । भावार्थ कथाहंतु जाणिवउ । ते कूलवालूआनी कथा कहीइ-- [३६. कूलवालूआनी कथा ] कीणइ एकि नगरि कोई एक आचार्य क्षमावंत हुआ । ते आपणा गच्छनइ पालई । हिवइ जिम श्री-महावीरनइ गोसालउ कुशिष्य, तिम ते गुरुनइ कुशिष्य एक सांपडिउ, गुरुनइ उदेशकारक दाविनीत, गुरुनइ प्रतिकूल । तेहनइ गुरु घणोइ सारणावारणा दिई. पणि ते कशिष्यनइ गमइ नही । इम सदा-इ ते गुरु-ऊपरि पाप बांधइ । अन्यदा गुरु यात्रा-भणी श्री. गिरिनारि पर्वति चडया । तिसिइ ते कुशिष्य चपल-लोचन भावइ तिहां सुख जोतउ देखी गुरे रीस कीधी । पछइ चेलउ डंस राखी रहिउ । गुरु जिवारइ पाछां ऊतरिवा लागा, तिवारइ केहिइ गडउ एक गुरु-भणी ढोली दीधउ | तिसिई गुरे ते पाषाण आवतउ जाणी, गुरु टली अलगा हुआ । गडउ वही आघउ गयउ। गुरु रीसाणा हूंता कहई, 'रे कुशिष्य ! तूं स्त्री-हूंतउ पतित थाए ।' पछइ ते शिष्य गुरुवचन कूडउं करिवा-भणी चीतवइ, 'हूं तिहां रहिसु, जिहां स्त्रीनउं नाम-मात्र नही सांभलउँ ।' इम चीतवी नर्मदा-नदीनइ कूलि जई मास-क्षपणादि तप तपतउ काउसगि रहिउ । तिसिइ वरसालइ नदीनउं महा-पूर आविउं । तेतलइ नदीनी अधिष्टायकई प्रमाणि प्रवाह टालिउ । तिहां लोक-माहि कूलवालूउ महात्मा ए नाम विख्यात हउ। हिवइ तिणि प्रस्तावि हार-कुंडल-वस्त्र-सहित सेचनक हस्ती श्री.श्रेणिक राजा हल्ल-विहल्लनई दीघउं । तेतलई श्रेणिकराजा परोक्ष हूउ । पछइ कोणिक राजि बइठउ । पणि श्रेणिकनी असमाधिई नगर-माहि रही न सकइ, बाहरि जई रहिउ। तेतलई प्रघाने बुद्धि दीधी । तिहां चंपानगरी वसावी । पछइ कोणिक कालादिक दस कुमार सहित तिहां रहिउ । पद्मावती पट्टराणी कीधी । ते राणीना आग्रह-लगइ कोणिकइ हल्ल-विहल्ल-कन्हई हार-कुंडल माग्यां । तिसिई हल्ल-विहल्ले विमासी, सार वस्तु लेई, रतोरतिइं विशालनगरीइ आव्या । तिहां हल्ल-विहरूलनउ नानउ घेडड राय राज्य करइ छ । तिणि हल्ल-विहल मान देई राख्या । तिसिइं प्रभाति कोणिक वात १K. नपुंसकता । २ C. भोगवावीई, K. भोगवावीइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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