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________________ मेरुसुदरगणि-विरचित श्रीफल-बील भांजी वस्त्र-युगल काढि । वली करंडी-माहि-थां आभरण काढयां । तेतलई तत्काल कुबडउ फीटी संपूर्ण-रूपि नल प्रगट हूउ । पछइ तिहां सर्व सभा-लोक देखतां नलनइ सिंहासनि बइसारी भीमराजा हाथ जोडी कहिवा लागउ, 'ए राज-संपदा, अम्हे, सर्वस्व ताहर। जि काइ आदेस दिउ ते ९ करउ ।' तिसिई वली दधिपर्ण राजा पणि ससंभ्रांत नलनइ प्रणाम करी कहइ जे, 'मइ अजाणि जि कांई अवज्ञा कीधी ते तूं खमि ।' वलि तिणि समइ धनदेव सार्थवाह मिलिवा आविउ । दवदंतीइ भाईनी परिई भक्ति कीधी । इम सघलानइ बहुमान देई, मासदिवस-सीम सर्व राख्या । पछइ नवनवा उत्सव करिवा लागा। इम अनेरइ दिनि कोई एक देवता आवी दवदंतीनइ कहइ, 'हे देवि! तुझनइ चीति आवइ, जे पूर्विइ तापसनउ नायक सम्यक्त्व लेवराविउ हूंतउ ? पछइ वली दीक्षा लेवररावी ? ते हूं सौधर्मदेवलोकि देता हूउ ।' इम कही सात कोडि सुवर्णनी वृष्टि करी अदृश्य हुउ। पछइ वसंत सार्थवाह, दधिपण,भीमादिक राजाए मिली नलनइ राज्याभिषेक कीधउ। पछइ भलइ मुहर्ति नल. राजा अयोध्या-भणी चालिउ । मार्गि अनेक देस,गाम,नगर साधतउ साधतउ अयोध्यानगरीनइ परसरि रतिवल्लभ-उद्याननि आवी ऊतरिउ। एहवइ कुवरि वात सांभली बीहवा लागउ। तेत. लइ नलि दूत मोकली कहाविउं, 'बांधव ! आवि, पासे करी वली खेलीइ । जु हं जीप तु माह उं राज, अश्व, हस्ती, सर्व माह उं, अनइ तू जीपइ तु ताहरउं ।' इम जिवारइ कहाविउं, तिवारइ कूचरि चोंतविउ, 'सही ए-साथिइ 'रण-भूमिकाइ नही जीपाइ, पणि पासे करी नलराजा आगि मइ जीतउ छइ अनइ वली र्ज पिसु ।' इम विमासी तिहां आवी बेहू बांधव पासे खेलिवा लागा। हिव भाग्यना उदय करी नलराजाइ सर्व पृथ्वी जीती। पछइ नलइ आपणउं राज्य लीघ अनइ कूबरनइ भाई-भणी युवराज-पदवी दीधी । हिवइ नलराजा आपणउं राज लेई दवदंतो-सहित कोशलानगरीना चैत्य वांदिवा गयउ । इसिइ अनेक राजा भेटि लेई आविवा लागा । इम घणा वरस भरतार्धनू राज्य पालिउं। तेतलइ निषध पिता देवलोकथी आवो नलनइ उपदेश दिइ, “ए असार संसार, तेह-माहि चारित्र जि सार । तेह-भणी हिव तूं दीक्षा लिइ'। पछइ नलराजाइ पुष्कल-पुत्रनइ आपणउं राज देई, दवदंती-सहित दीक्षा लिधी । तिहां सतरे भेदे संयम पालतउ पृथ्वी-माहि विहार करिवा लागउ। पणि नल सकोमलपणा-लगइ चारित्र पालतउ ढीलउ हूउ । एहवइ निषधि देवि आवी दृढ कीधउ । तुही नल-मुनि दवदंतीनइ विषइ कामातुर हउ । वली पिताइ आवी प्रतिबोधिउ । तुही चारित्र पाली न सकइ । पछइ नल-मुनिइं अणसण लीधउं । तिवारइ नलनइ स्नेहि दवदंतीइ पणि अणसण लीधउं । पछइ अणसण-सहित नल मरी कुबेर-नामि उत्तरदिशिनउ अधिपति हूउ, 'अनइ दवदंती तेहनी देवी हुई । इम दवदंतीनी परिई अनेरे लोके शील पालिव। इति श्री. शीलोपदेशमाला-बालावबोधे नल-दवदंतीकथा ॥३०॥ वि श्री कमला महासतीनी कथा कहीइ [३१. कमला महासतीनी कथा] श्री. लाटदेशि भृगुकच्छनगरि मेघरथ राजा राज करइ । तेहनइ गृहांगणि विमला राणी। तेहनी पत्री कमला एड्वइ नामि । सात पुत्र ऊपरि ते पुत्री जाई। महा रूपवति, वाथती वाधती १. K. संग्रामि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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