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शीलपदेशमाला - बालाबोध
घाती, हर्ष धरती वेलिना घर-माहि बालकनइ मूकी, आपणपइ तलानि पाणी पीवा-भणी जेतलइ आवर, तेतलइ पाणी-माहि-थिकउ जलहस्ती नीकलिङ । तिणि मयणरेखा अपहरी आकाशि ऊलाली ।
तेतलइ नंदीश्वरि यात्रा -भणी विद्याधरेश्वर जातउ हूंतउ, तिणी मदनरेखा पडती झाली, कामनउ वा हिउ लेई चालिउ । तेतलइ मदनरेखा विलाप करती कहा, 'हे बांधव ! मुझनइ मूकि, जिणि कारण काननवन - माहि जातमात्र बालक मूंकिउ छइ, तेहनइ स्वापद खाईसिहं । वली स्तन्यपानपाखइ बालक मरिसिइ । तेह-भणी कृपा करि मुझनइ तिहां मूकि अथवा ते बालक इहां आणि ' तिवारs विद्याधर कहइ, 'ए वात हूं तु करउ, जु मुझनइ मानह, भर्तापणइ पडिवजइ । एक ए रूडउं हूउं, जे तीणइ हाथीइ तूं ऊलाली अनह मइ पडती झाली । नहीतरि मरण हुउ हुतउं । हिव एक बोल माहरउ मानि । जिणि कारणि हूं मणिचूड विद्याधर - चक्रवर्त्तिनउ पुत्र मणिप्रभ विद्याधर एहवइ नामिइ, पितानइ प्रणाम करवा जातउ हूंतउ एहवइ मइ तूं दीठी । हिव तूं मुझनइ पडिवजी, विद्याधरनो स्वामिनी था । वली ताहरइ जे पुत्रनो आर्ति छइ, तेहनी वात सांभलि । मिथिला नगरीनउ अधिपति श्री पद्मरथ राजा वक्र-शिक्षित घाडइ अपहरिउ, वन-माहि आविउ हूंतउ । तिणि ते बालक रोत सांभलो तिहां आवी बालक लीघउ सर्वाग-सुंदर देखी । पछइ आपण घरि लेई भार्या पुष्पमाला, तेहनइ पुत्र मानोनइ आउ । कहिउ, "आपणइ एह जि पुत्र ।" इम कही सुखि ते पुत्रनइ पालइ छइ । ए वात मुझनद प्रज्ञप्ति - विद्याइ कही । हिव ए विखवाद मूंकि । मुझनइ आदरि ।' तिवारहूं मदनरेखा विषाद करती मन-माहि चतवइ, 'एतला दिवस - ताइ मई आपण शील राखिडं, पणि हिव किम कीजिसिंह ? कउण उपाय चतवीसिइ १ शील तु सही पालिङ जोईइ अनइ ए तु स्मरार्त' । तु कांई कालक्षेप करउं ।' तेह-भणी कहर, 'हे महाभाग ! पहिलउं मुझन नंदीश्वरि यात्रा करावि । पछइ जिम कहेसि, तिम करिसु ।' तिवारइ संतुष्ट वर्तमान मानिउ ।
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पछइ मदनरेखानइ नंदीश्वरि यात्रा लेईं चालिउ । क्रमिइ नंदीश्वरि आव्यउ | बावन चैत्यदेव नमस्करिया । तेतलइ मणिचूड मुनि चतुर्ज्ञानी तिहां आविउ । तिणि मणिप्रभि आपणउ पिता आविउ जाणी, प्रदक्षिणा देई, आगलि बइठउ । तिसिइ पिताइ तिम कांई उपदेश दीघउ, तेहवउ कांई संसारनुं असारपणउं देखाडिउं, जिम मणिप्रभ ऊठी मदनरेखानई बहिनपणई पडिवजी खमाविवा लागउ, 'बहिन ! हूं वरांसिउं । हिवइ मइ मननउँ कुटिल रणउं मूंकिउं ।' पछइ ज्ञानीमहात्मा-कन्हइ पुत्रनउ सर्व वृत्तांत पूछिउ । ज्ञानीइ मूल-हूंतउ आरंभी सर्व वृत्तांत पुत्रनइ कहिउ । तिहां मणिप्रभि परदारनउ नीम लीघउ |
इसिइ आकास- इतु ऊतरी देवता एक महा रिद्धिनइ विस्तारि, मदनरेखा - पाखती त्रिणि प्रदक्षिणा देई, प्रणाम कीधउ | पछड़ मुनिनइ प्रणाम कीधउं । एहवउ असमंजस स्वरूप देखी मणिप्रभ देवता-प्रति कहा, 'अहो देवेंद्र ! चतुर्ज्ञानी उल्लंघोनइ पहिलउं स्त्रीनइ प्रणाम करइ, तु तुझन सिउं कहीइ ?' इम उलंभइ दीघइ वलतउ जेतलई देवता बोलाइ, तेतलइ चारण- श्रमण महात्मा बोलिउ, वत्स ! उलंभउ म दइ । ए तु कृतज्ञ, उत्तम, जिणि कारणि ईणी मदनरेखाइ युगबाहु भरतारनइ जिवारई खड्ग करी आणि वेदनाग्रस्त दीठउ, तिवारइ एहनइ तेहवा कांई उपदेश दीघा, जे उपदेशनइ प्रमाणिइ मरी पांचमइ देवलोक देवता हूउ । पछइ P. कामार्त्त छ ।
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