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________________ चित्र अलङ्कारनो पण समावेश करेल छे. आचार्य श्रीहेमचन्द्रे ए ज अध्यायमा चित्र अलङ्कारना पण घणा प्रकार बतावेल छे-'स्वरनियम, व्यंजननियम, स्थाननियम, गतिनियम, आकारनियम, च्युत अने गूढ वगेरे. स्वरनियम वगेरेनां लक्षणो अने उदाहरणो काव्यानुशासनमा सविस्तर आपेल छे. प्रस्तुत शतार्थीनो समावेश गूढ काव्यमां थाय छे. जेनो अर्थ गूढ होय, सहज रीते सुगम न होय तेने गूढ कहेल छे अने जेमां कर्ता कर्म के क्रियापद वगेरे गूढ होय तेने पण गूढ कहेल छे. शतार्थीनी व्याख्या जोतां तदन सुगम अर्थवाळो 'सिद्धये' इत्यादि श्लोक विशेष गूढ अर्थवाळो देखाय छे. कर्ताए बतावेल बधा अर्थो तदन जुदा जुदा अने १. जेमा अ, आ, इ वगेरे एक ज स्वर वपरायो होय ते स्वरनियम अथवा जेमां ह्रस्व स्वर ज वपरायो होय वा दीर्घस्वर ज वपरायो होय ते स्वरनियम-जेमके-"जय मदनगजदमन वरकलभगतगमन"। इत्यादि. जेमां अमुक एक ज व्यंजन वपरायो होय ते व्यंजननियम, जुओ माघk उदाहरण. जेमां कंठस्थाननो के तालुस्थान वगेरे अमुक एक ज स्थाननो धर्ण बपरायो होय ते स्थाननियम. जेमके-(काव्यादर्श ३, ९१) 'अगा गां गाङ्गकाकाकगाह काघकका कहा' आमां बधा ज कंठ्य स्वर अने व्यंजन छे. जेमां गोमूत्रिकागतिनी रीते पदोनी गोठवणी होय ते गतिनियम. ए ज रीते तुरंगपदागत वगेरे-माघसर्ग १९ श्लो० ४६. जे पद्य मुरजाकारे तथा खड्गाकारे एम विविधाकारे गोठवी शकाय ते आकारनियम. जेमके- जुओ माघसर्ग १९, श्लो० २९ मुरजबन्ध. श्लो० १२० चक्रबंध. आवा अनेक चित्रकाव्यो माघना १९ मां सर्गमा छे. . २. 'सिद्धये' पदनो अनेक रीते पद विभाग करीने तेना जुदा जुदा विचित्र अर्थो बतावेला छे, जेमके (१) "सिद्धये' चतुर्थीविभक्तिवालु एकवचन-श्लो० १ (२) सिद्धा + ई 'सिद्धे' एवं एकारांत बनावी तेनुं चतुर्थीनु एकवचन-श्लो. ३ (३) सिद्ध+य='सिद्धय' पदनुं सप्तमीनुं एकवचन-श्लो० ५७ (४) सिद्ध ! संबोधन अने 'या'नुं चतुर्थी एकवचन 'ये' बन्ने पद मळीने सिद्धये-श्लो० ७४. (५) सिद्धः+ए एम विभाग कल्पी बिसर्गना मूळ 'र' नो य करी सिद्धये. आ स्थले 'ए' मात्र पादपूरक छे-श्लो० ७२.(६) सिद्ध+या+इन-सिद्धयेन ए रीते पण विभाग बतावेल छे. अहीं 'सिद्धयेन' ने नामधातु बनावी तेन 'सिद्धयेन्' एवं नकारांत पद करी तेनु प्रथमान एकवचन सिद्धये-श्लो० ६९. (८) सिद्ध+या+ई एवो विभाग करी तेनो वर्धमानना विशेषण तरीके उपयोग करेल छे-श्लो० ६८. (९) सित्+हयई एवो विभाग बतावी ते द्वारा सिद्धये ने संबोधन• एकवचन बतावेल छ- लो० ९६. (१०) सिद्ध ! ये ! बन्ने सम्बोधनरूपे करीने 'सिद्धये' पदने समजावेल छे-लो० १११. अहीं 'या' नुं संबोधन 'ये' छे. आ उपरांत बीजी पण अनेक रीते 'सिद्धये' पदनु पृथक्करण करीने जुदा जुदा अर्थो दर्शावेल छे. ए ज रीते 'वर्धमान' वगेरे तमाम पदोनो जुदी जुदी रीते विभाग करी जुदा जुदा भावो बतावेला छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002652
Book TitleRatna karavatarikadya sloka satarthi
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1967
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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