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अर्थो कष्टसाध्य अने रसवगरना होवा छतां जेमनामां प्रतिभा अने कल्पना बन्नेनुं जोडु रहेल छे तेमने मन आ अनेक अर्थोनुं वर्णन कष्टसाध्य न रहेतां सुखसाध्य बने छे अने अरस न थतां सरस थई जाय छे. आवी रचनाओमा व्याकरणना घणा खरा अपवादोनो आश्रय लेवो पडे छे, घणा अक्षरोनो सेळभेळ मानवो पडे छे अने जे अनुस्वार वगेरे न होय तेनी हाजरी स्वीकारवी पडे छे तथा ते अनुस्वार वगेरे होय तो तेनो लोप समजीने काम लेवू पडे छे. डल, रल, शस, नण, बव वगेरे अक्षरोने एक सरखा मानीने काम चलाववानुं होय छे– 'जड'ने क्यांक 'जल' समजवू पडे छे अने 'जल'ने 'जड' समजवू पडे छे वगेरे अनेक विचित्रताओ आवी रचनामां निरपवादरीते आवती होय छे छतां आवो कविमा माघे, भारवि, श्रीहर्ष वगेरेए खेडेल छे. माघ वगेरे काव्योना अमुक सर्गना अमुक श्लोको जोवाथी आ वातनी प्रतीति थाय तेम छे. प्रस्तुत शतार्थीना प्रणेता पण ए पूर्व कविओना मार्गे चाली पोतानी प्रतिभा अने कल्पना शक्ति बताववा समर्थ निवड्या छे ए जैन कविओ माटे विशेष संतोषनो विषय छे. ७-चित्रकाव्यरूपे शतार्थी
आचार्य हेमचन्द्र पोताना काव्यानुशासनमां पांचमा अध्यायमा छ शब्दालङ्कारोनु स्वरूप बतावेल छे-अनुप्रास, यमक, चित्र, श्लेष, वक्रोक्ति अने पुनरुक्ताभास. आ छ ए अलङ्कारो शब्दसम्बन्धी ऐटले शब्दप्रधान छे. छमां एक १. माघ सर्ग १९ लोक० ३ चित्रकाव्य
जजोजोजाजिजिज्जाती तं ततोऽतिततातितुत् ।
भाभोऽभीभाभिभूभाभूरारारिररिररः ॥ आमाँ एक पादमां एकलो 'ज' व्यंजन छे, बीजामां एकलो त, त्रीजार्मा एकलो 'भ' अने चोथामां एकलो 'र' व्यंजन छे. २. किरातार्जुनीय सर्ग १५ श्लो० १८ चित्रकाव्य
वेत्रशाककुजे शैलेऽलेशंजेऽकुकशात्रवे आ पादने छेल्लेथी वांचो के पहेलेथी वांचो बधुं सर ज वंचाय छे. एवं ज-१८मा श्लोकचं उत्तरार्धः
"यात किं विदिशो जेतुं तुजेशो दिवि किंतया" ३. नैषधीय चरित सर्ग १३ श्लो. २२-२३ चित्रकाव्य. २२ मा तथा २३ मा श्लोकमां वरुणर्नु
वर्णन छे अने एज श्लोकमां नलनु पण वर्णन छे. नैषधीयचरितना बावीशमा सर्गना १४८ मा श्लोकमां एक पण गुरु अक्षर वपरायेल नथी.
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