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पुरोवचन आ पुरोवचनमा जे मुद्दामओ विशे चर्चा करवानी छे ते आ छे:
१ प्रति परिचय, २ प्रेसकोपी, ३ शतार्थी- परिमाण, ४ कर्तानो परिचय, ५ शतार्थीनुं मूल अने शतार्थी नाम, ६ शतार्थीकारनु बुद्धि कौशल तथा कल्पना शक्ति, ७ चित्रकाव्यरूपे शतार्थी, ८ बोजी बीजी आवी अनेकार्थ कृतिओ तथा शब्दना चमत्कारवाळी कृतिओ, ९ शतार्थी चित्रकाव्यनुं प्राचीन दृष्टिए मूल्यांकन, १० सार्थ एकाक्षरी कोशोनुं प्रामाण्य साधार छे ? ११ संपादन. १-प्रतिपरिचय
प्रस्तुत संपादन सारु 'शतार्थी'नी फोटोकोपी उपयोगमा लीधेल छे. तेनी मूल प्रति अमदावादना डेलाना उपाश्रयना भंडारमा छे. फोटो कोपी उपरथी मालुम पडे छे के ते मूल प्रत कागळनी छे. अध्यापक श्रीवेलनकर महाशये निर्मेला, लिखित पुस्तकोना उपलब्ध सूचिपत्रोना संग्रहरूप जिनरत्नकोशमां करेली नोंध उपरथी एम जणाय छे के बंगाल एशियाटिक सोसायटीना पुस्तकसंग्रहना सूचीपत्रमा 'शतार्थी'नी एक कागळनी प्रतिनी नोंध छे, आ सिवाय बीजा बीजा पाटण खंभात वगेरेना प्रसिद्ध प्रसिद्ध भंडारोमां बराबर तपास कर्या विना एम तो केम कही शकाय के ए भण्डारोमां शतार्थीनी प्रति नहीं होय ?
तदाकार-बराबर तादृश-फोटो कोपी उपरथी शतार्थीनी मूळ कागळनी प्रतिनो आकार तथा पानानां मापनो बराबर ख्याल आवी जाय छे. फोटो कोपीनी क्ल प्लेट ६१ छे. आनो अर्थ ए के मूळ कागळनी प्रतिनां पाना ३१ छे.
फोटो कोपीनी ६१मी प्लेटनी त्रण लाइनो सुधी शतार्थी लखायेल छे अने पछी व्याकरणना विषयने लगता केटलाक श्लोको लखेला छे. तेमां प्रथम श्लोक आ छे
ब्यञ्जनानि त्रयस्त्रिंशत् स्वराश्चैव चतुर्दश ।
अनुस्वारो विसर्गश्च जिह्वामूलीय एव च ॥ अन्तनो श्लोक आ छेव्याकरणात् पदसिद्धिः पदसिद्धरर्थनिर्णयो भवति ।
अर्थात् तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात् परं श्रेयः ॥ आ श्लोकोने अन्ते 'इति लक्षणश्लोकाः' एम लखेल छे.
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