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________________ २० श्रीवल्लभने विवेच्य शब्दों का विवेचन और लिङ्गनिर्वचन, विशदता एवं प्रामाणिकतां के साथ किया है। संस्कृत शब्दों का व्यवहार देश्य शब्दों में किस प्रकार होता है इसको दिखलाने के लिये श्रीवल्लभ ने प्रायः 'इति भाषा' 'लौकिके' कहकर १५०० शब्दों के लगभग राजस्थानी शब्द इस टीका में दिये हैं। यह टीका 'अमो सोम जैनग्रन्थमाला' बम्बई द्वारा सन् १९४० में प्रकाशित हो चुकी है । ४. हैमनिघण्टुशेषटीका यह टीका आगमप्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी द्वारा सुसम्पादित होकर लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद से सन् १९६८ में प्रकाशित हो चुकी है। श्रीवल्लभ ने अपनी अभिधानचिन्तामणि नाममाला की सारोद्धार टीका (र. सं. १६६८) में काण्ड ४ पद्य २०८ की व्याख्या करते हुये लिखा है: "रायणिनामानि श्रीहेमचन्द्राचार्यकृतहैमनिघण्टुशेषोक्तानि ज्ञेयानि । तद्यथा-राजादने तु राजन्या आदि । एतेषां व्युत्पत्तिस्तु अस्मत्कृतनिघण्टुशेषटीकातो ज्ञेया ॥' इस अवतरण से स्पष्ट है कि इस टीका की रचना सं. १६६७ के पूर्व ही श्रीवल्लभने कर दी थी। इस टोका में भी श्रीवल्लभने संस्कृत शब्दों के राजस्थानी रूप ६०० से भी अधिक दिये हैं। ५. अभिधानचिन्तामणिनाममालासारोद्धार टीका आचार्य हेमचन्द्रप्रणीत अभिधानचिन्तामणिनाममाला पर श्रीवल्लभ ने सं. १६६७ में जोधपुर में, महाराजा श्री सूरसिंहजी के राज्यकाल में 'सारोद्धार' नामक विस्तृत टीका की रचना पूर्ण की: तथा योधपुरद्रङ्गे सूरसिंहनरेशितुः । राज्ये च वत्सरे सप्तर्षष्टिषट्चन्द्रसम्मिते ॥७॥ ___ सारोद्धारप्रशस्तिः __ यह टीका बहुत ही प्रौढ और विशाल है । इसमें टीकाकार ने शब्दों के पर्यायमात्र देने एवं प्रचलित शब्दों को साधनिका देने के चक्र में न फंसकर, विशिष्ट शब्दों की सिद्धि, व्युत्पत्ति, लिङ्गनिर्वचन तथा भूरिशः ग्रन्थों के उद्धरणों द्वारा टीका को स्पष्ट और सरस बनाने का प्रयत्न किया है । शाब्दिकसिद्धि और लिङ्गभेदादि के कारण शाब्दिक-प्रयोगों को ध्यान में रखते हये, इस टीका में श्रीवल्लभने अन्य ग्रन्थों के विपुलता के साथ उद्धरण दिये हैं । व्याख्या में लगभग एक सौ सत्तर १७० ग्रन्थों के उद्धरण प्राप्त होते हैं । इस टीका में भी श्रीवल्लभ ने हैमलिङ्गानुशासन दुर्गपदप्रबोध एवं निघण्टुशेष टीका के समान ही 'इति भाषा' 'इति लोके' 'इति प्रसिद्धे' कहकर लगभग २५०० शब्दों के राजस्थानी भाषा के रूप प्रदान किये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002650
Book TitleHaimanamamalasiloncha
Original Sutra AuthorJindevsuri
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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