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वसुदेवहिंडी-मज्झिमखडे तहा करेहि त्ति । ततो तेण तक्खणं चिय णाणा-मणि-कणग-रयण-किरण-संचय-विमलपदिप्पंत-कंत-पसरिता, खिखिणि-वर-हेम-जाल-माल-ताल-ललित-पदिपंत-कणय-घंटितकिणिकिणिकि णिकिणित-घणरसित-महुर-चउर-सह-समिद्ध-सिरि-समुदयोवसोभिता, मिसिमिसिमिसेत-मणि-मल्ल-दाममहल्लंत-कुसुममालब्भलंकिता, छत्त-चामर-सणाहा, कयकोउग-विविह-भूसण-कराल-सुसमत्थ मुइत-वर-पुरिस-सहस्स-समुक्खित्त-कन्नह(?)ल्लंत वियय-वरं चेवय(१)-पंतिमालोवसोभिते-विरायमाणा सिवा सिबिया समुवढविया मे। तं च सह पितासु समासूढो हं संचारित-चारु-चामराडोव-भास(सु)रो पहतऽब्भुवतूर-णिणाद-गंभीर-सूत-मागध-बंदिण-रसते पेसित-थुति-वाद-जयजयावित-सह-समुच्चरित-दस-दिसाभोगो चलितो हं नागर-जणेण विम्हय-वियसंत-कन्न नेत्तेण उम्मुहेणं पेच्छिज्जमाणो। पासात-भवण-हम्मिय-गवक्ख-आलोयणग-परिसंठितेण य विसेसतो नगरविलया-जणेण दीसमाणो पसंसिज्जमाणो य संपद्वितो ह। भागेरधिदत्तादीसु य राय-पुत्तेसु असुमंतेण णंदोवणंदेसु बंधुसु य गंगरक्खितेणं अन्नेसु य णागरगपुरिस-मुक्खेसु पवर-करि-तुरंग-रहवर-विलग्गेसु गम्ममाणो विणिग्गतो हं णगरीओ ।
जाणामि जह ण सोहइ इणमो असमत्त-वन्त्र्यिं सव्वं ।
तह वि विसूरइ हिययं पयइ-कहा-वित्थर-गतस्स ॥१॥ ततो ह वयंसाणं गणित-वागरण-च्छंद-जोतिस-मीमंसा-संख-समिक्खंतवाद-कणगसत्तरि-माढर-मासुरक्ख-सिक्ख-वेसिसित-लोइय-लोयायतिय-योवयोई-सद्वितंत-वेदपुराणेतिहास-उप्पात-दिव्व-भुमंतलिक्ख-गंधव्व-कव्व-णाडगक्खाइया-पसंग-संजा(ज)णित-विविह-वपु(?पु)-चडगरेसु आपूरमाण-सोत-पंधो पत्तो ह विविधभूतलितं पज्जंत-पयत्त-कंत-महिम(म) जिणाययण(?णं)। आलोए य सिबियं पमोत्तणं सह पियासु सवयंसो उवगतो ह जिणाययणं ।
तत्थ य आलोए य कयप्पणामो सुरभि-धूवं चारेऊणं जिण-पडिमाणं] सह परियणेणं कय-काउंस्सग्ग-थूइ-वंदणो वंदिऊण य अहासन्निहिते साहुणो भत्तीए पज्जुवासमाणो चिरं ठितो ह । ताहे रायतेउरागमण-सम्मद-परिसंकी विणिग्गतो हे जिणायतणाओ । समुहित-इट्ठजण-परिवुडो पेच्छंतो विविह-भूतिमंताई उववणाई इओ ततो य सुचिरं आहिंडिउं पयत्तो कुसुम-भर-भार-भासुर-पवर-वच्छ-विच्छइत-मुदितपरिलिंत-भमर-मधुकर-पहकर-पडिभुजमाण-मुगुमुगुमुगेंत-रुणंत-मुणुमुणागहण-कुतुकुतुकुतेंत-कन्न(कन्त)-कोइल-मयूर-सूसर-सारसोरसित-गंभीराइधातवन्नराणि सेवमाणो । १. तवरा• खं० ॥२. •तपेसित पेसित थु० ख०विना ॥ ३. तिलययोषयोई सरहि ख• ॥४. वपुंग सं• विना ॥ ५. •पभोप० ख० विना ॥
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