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________________ नवाँ स्तबक (१) मोक्ष की संभावना तथा मोक्ष के साधन अन्ये पुनर्वदन्त्येवं मोक्ष एव न विद्यते । उपायाभावतः किं वा न सदा सर्वदेहिनाम् ॥५५३॥ कुछ दूसरे वादियों का कहना है कि मोक्ष जैसी कोई वस्तु है ही नहीं और वह इसलिए कि मोक्ष-प्राप्ति का कोई उपाय संभव नहीं; (उनका प्रश्न है कि) यदि मोक्षप्राप्ति का कोई उपाय सचमुच संभव हो तो वह उपाय सब प्राणियों को सब समय प्राप्त क्यों नहीं होता ।। टिप्पणी प्रस्तुत समूचे स्तबक में हरिभद्र मोक्ष की संभावना-असंभावना के प्रश्न की चर्चा करते हैं । यहाँ यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अब हरिभद्र किसी ऐसे प्रश्न को नहीं उठाने जा रहे हैं जिसका सीधा संबंध सत्ताशास्त्रीय समस्याओं से हैं क्योंकि इससे अलग स्तबक में वे सर्वज्ञता की संभावना असंभावना का प्रश्न उठाएँगे तथा उससे अगले स्तबक में जो ग्रंथ का अंतिम स्तबक है, पहले शब्दार्थ सम्बन्ध का प्रश्न और फिर ज्ञान, क्रिया, मोक्ष आदि के स्वरूप संबन्धी कुछ प्रश्न । कर्मादिपरिणत्यादिसापेक्षो यद्यसौ ततः ।। अनादिमत्त्वात् कर्मादिपरिणत्यादि किं तथा ॥५५४॥ उत्तर दिया जा सकता है कि ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि मोक्षप्राप्ति के उपाय की प्राप्ति कर्म आदि के परिपाक आदि पर निर्भर करती है; लेकिन इस पर इन वादियों का प्रश्न हैं कि जब कर्मसंचय की प्रक्रिया भी अनादि काल से चलती चली आ रही है तब वही (अर्थात् उक्त कर्मपरिपाक आदि ही) सब प्राणियों को सब समय प्राप्त क्यों नहीं। टिप्पणी प्रस्तुत वादी का आशय यह है कि जब प्रत्येक जीव की कर्मसंचय प्रक्रिया अनादि है तब यह कहना उचित नहीं जान पड़ता कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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