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दार्शनिकों के लिए अनिवार्य हो जाता है जो पुनर्जन्म की संभावना में विश्वास रखते हैं । अतएव हम पाते हैं कि प्राचीन भारत के सभी मोक्षवादी दार्शनिकों ने-चाहे वे ब्राह्मण हों, बौद्ध अथवा जैन-भौतिकवाद का खंडन किया है । सचमुच यदि मोक्ष-प्राप्ति का अर्थ है पुनर्जन्मचक्र से मुक्ति पाना तो 'मोक्ष की प्राप्ति-अप्राप्ति का प्रश्न ही तब उठता है जब पहले पुनर्जन्म की संभावना सिद्ध कर ली जाए, जबकि पुनर्जन्म की संभावना सिद्ध करने के लिए भौतिकवाद का खंडन आवश्यक है। हरिभद्र के भौतिकवादविरोधी तर्कों का अन्तिम उद्देश्य भी पुनर्जन्म तथा मोक्ष की संभावना में पाठक का विश्वास उत्पन्न करना है, लेकिन उन तर्कों से सहानुभूति कदाचित् एक ऐसे पाठक को भी हो सकती है जो स्वयं पुनर्जन्म की संभावना में विश्वास नहीं रखता । उदाहरण के लिए, जिन पाश्चात्य दार्शनिकों ने भौतिकवाद का खंडन किया है उनकी तर्कसरणि एक बड़ी सीमा तक हरिभद्र की तर्कसरणि के समानांतर चलती है, लेकिन पुनर्जन्म की संभावना में इन दार्शनिकों का विश्वास नहीं । भौतिकवाद के विरुद्ध हरिभद्र का मुख्य आरोप यह है कि यदि चेतना भौतिक तत्त्वों का धर्म है-न कि किसी अभौतिक तत्त्वविशेष का (जिसे 'आत्मा' आदि नामों से जाना जाता है)तो प्रत्येक भौतिक वस्तु को सचेतन होना चाहिए; भौतिकवादी का यह प्रत्युत्तर कि चेतना सभी भौतिक वस्तुओं का धर्म न होकर किन्हीं विशेष प्रकार की भौतिक वस्तुओं का धर्म है, हरिभद्र को सन्तुष्ट नहीं करता । वे केवल इतना मानने को तैयार हैं कि आत्मा के बंध के लिए उत्तरदायी सिद्ध होनेवाले 'कर्म' एक भौतिक वस्तु है, लेकिन स्पष्ट ही यह एक विषयान्तर है-और एक ऐसा विषयान्तर जो भौतिकवादी को किसी प्रकार की सांत्वना नहीं पहुँचाता । २. कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद, कर्मवाद :
इन चार वादों का संबंध किन्हीं दार्शनिक संप्रदाय-विशेषों के साथ नहीं, लेकिन भारत के दार्शनिक साहित्य में इनका उल्लेख अत्यन्त प्राचीनकाल से पाया जाता है । लगता ऐसा है कि इन वादों से संबंधित कोई दार्शनिक संप्रदायविशेष कभी अस्तित्व में ही न थे और यदि थे भी तो वे उन सम्प्रदायों के सामने टिक न सके जिनकी ख्याति कालान्तर में भी अक्षुण्ण बनी रही । फिर भी इन वादों का स्वरूप-विश्लेषण सावधानी से किया जाना चाहिए और वह इसलिए कि यह विश्लेषण कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर प्रकाश डालेगा, जिनकी चर्चा हमारे सुपरिचित दार्शनिक सम्प्रदायों के साहित्य में हुई है । दो शब्दों में कहा
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