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सत्ताशास्त्र के प्रश्नों को आधार बनाकर अपने प्रतिद्वन्द्वी दार्शनिक संप्रदायों के मन्तव्यों की आलोचनात्मक समीक्षा करते समय हरिभद्र ने यह बात प्रायः कही अवश्य है कि इन दार्शनिक संप्रदायों के इन मन्तव्यों को स्वीकार करने पर मोक्ष का सिद्धान्त स्वीकार करने में अमुक अमुक कठिनाइयाँ उठ खड़ी होंगी, लेकिन शास्त्रवार्त्तासमुच्चय की समूची विषयवस्तु के साथ न्याय कर सकने के लिए यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि प्रस्तुत ग्रंथ की मोक्षस्वरूपविषयक चर्चा उसकी सत्ताशास्त्रीय चर्चा का एक भाग मात्र है और वह भी एक अल्प भाग मात्र । इस प्रारंभिक स्पष्टीकरण के बाद हम प्रस्तुत सत्ताशास्त्रीय चर्चा का मूल्यांकन उसके अपने स्थान पर कर सकते हैं ।
जैसा कि हम उपर देख चुके हैं, शास्त्रवार्त्तासमुच्चय में हरिभद्र ने निम्नलिखित दार्शनिक मान्यताओं को अपनी आलोचनात्मक समीक्षा का लक्ष्य बनाया है :
१. लोकायत दार्शनिकों का भौतिकवाद
२. कालवाद, स्वभाववाद, नियतिवाद, कर्मवाद
३. न्याय-वैशेषिक दार्शनिकों का ईश्वरवाद
४. सांख्य दार्शनिकों का प्रकृति - पुरुषवाद
५. सौत्रान्तिक बौद्ध दार्शनिकों का क्षणिकवाद ६. योगाचार बौद्ध दार्शनिकों का विज्ञानाद्वैतवाद
७. माध्यमिक बौद्ध दार्शनिकों का शून्यवाद
८. अद्वैत वेदान्ती दार्शनिकों का ब्रह्माद्वैतवाद
९. मीमांसा तथा कतिपय बौद्ध दार्शनिकों का सर्वज्ञताप्रतिषेधवाद
१०. सौत्रान्तिक बौद्ध दार्शनिकों का शब्दार्थसंबंधप्रतिषेधवाद
इन मान्यताओं को एक एक करके ले लिया जाए ।
१. लोकायत दार्शनिकों का भौतिकवाद :
भौतिकवाद का मूल मन्तव्य है भौतिक तत्त्वों से पृथक् किसी चेतन तत्त्व की सत्ता अस्वीकार करना, और ऐसे भौतिकवाद का खंडन उन सभी
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