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छठा स्तबक
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उस दशा में यह भी कहना युक्तिसंगत न होगा कि उक्त वस्तु उक्तरूप अर्थक्रिया को सहारा देती है और वह इसलिए कि (प्रस्तुत वादी के मतानुसार) यह वस्तु (अतः यह अर्थक्रिया) उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाती है; न यही कहना युक्तिसंगत होगा कि उक्त वस्तु उक्तरूप अर्थक्रिया का नाश करती है. और वह इसलिए कि (प्रस्तुत वादी के मतानुसार) यह वस्तु (अतः यह अर्थक्रिया) अपने कारण से ही नश्वर स्वभाव लिए हुए जन्मी है ।
अन्यत्वेऽन्यस्य सामर्थ्यमन्यत्रेति न संगतम । ततोऽन्यभाव एवैतन्नासौ न्याय्यो दलं विना ॥४४०॥
यदि उक्त अर्थक्रिया उक्त वस्तु से अन्य कुछ है तो यह अयुक्तिसंगत मान्यता सिर पड़ती है कि एक वस्तु स्वयं तो एक स्थान (अथवा काल) में स्थित है तथा जिस अर्थक्रिया को जन्म देने में इस वस्तु की सामर्थ्य है वह अन्य किसी स्थान (अथवा काल) में । कहा जा सकता है कि एक वस्तु का एक अन्य वस्तु को उत्पन्न करना ही उसका अर्थक्रिया को उत्पन्न करना है, लेकिन इस पर हमारा उत्तर है कि इस नई वस्तु का जन्म किसी रूपान्तरणशील कारण के बिना संभव मानना युक्तिसंगत नहीं।
टिप्पणी-क्षणिकवादी का कहना है कि क का ख को जन्म देना ही क का अर्थक्रियासमर्थ होना है; इस पर हरिभद्र का उत्तर है कि क ख को जन्म तभी दे सकता है जब ख क का एक रूपान्तरण हो। लेकिन क्षणिकवादी, जिसके मतानुसार क तथा ख दोनों क्षणिक वस्तुएँ हैं, ख को क का रूपान्तरण नहीं मान सकता ।
नासत् सत् जायते यस्मादन्यसत्त्वस्थितावपि ।
तस्यैव तु तथाभावे नन्वसिद्धोऽन्वयः कथम् ॥४४१॥
किसी अन्य वस्तु के उपस्थित रहते हुए भी एक नास्तित्वशील वस्तु . अस्तित्वशील नहीं बन सकती; और यदि कहा जाए कि यहाँ यह अन्य वस्तु
ही एक नए रूप में अस्तित्वशील बनी है तो हमारा प्रश्न है कि तब एक वस्तु को अपने रूप-रूपान्तरों के बीच एक ही बनी रहने वाली मानना अयुक्तिसंगत क्यों ।
१. क का पाठ : तथा भावे ।
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