________________
१३२
शास्त्रवार्तासमुच्चय
युक्तिसंगत नहीं ठहरेगा कि इस मुख्य कारण से जनित कार्य उक्त नवीनता वाला है (अर्थात् उस मुख्य कारण से विसदृश स्वभाव वाला है); क्योंकि यदि ऐसा न हो तो उक्त मुख्य कारण भी अपने से सदृश कार्य को ही जन्म दे बैठेगाउसी प्रकार जैसे कि इस मुख्य कारण के पूर्ववर्ती भूत क्षणों ने अपने से सदृश कार्यों को ही जन्म दिया था ।
टिप्पणी-पूर्वोक्त टिप्पणी की भाषा में, यदि क की उपस्थिति ख में कोई नवीनता नहीं लाती तो समझ में नहीं आता कि क्यों ख के बाद ग का ही जन्म हुआ ख' का नहीं ।
अस्थानपक्षपातश्च हेतोरनुपकारिणी ।
अपेक्षायां नियुङ्कते यत् कार्यमेतद् वृथोदितम् ॥४२२॥
प्रस्तुत वादी का कहना है कि यदि एक वस्तु को अपना किसी प्रकार का उपकार न करने वाली एक दूसरी वस्तु पर निर्भर रहने के लिए बाध्य होना पड़े तो इसका अर्थ यह हुआ कि इस पहली वस्तु के कारण का इस दूसरी वस्तु के प्रति अनुचित पक्षपात है; लेकिन उसका यह कहना बेकार की बात है।
टिप्पणी-पूर्वोक्त टिप्पणी की भाषा में, यदि ख का नाश अवश्यंभावी था चाहे क आता या न आता तब ख के नाश का कारण क को मानने में कोई तुक नहीं, (इसके विपरीत, क्योंकि क की अनुपस्थिति में ग की उत्पत्ति नहीं हुई होती इसलिए ग की उत्पत्ति का कारण क को मानना उचित है), ऐसी दशा में भी यदि कहा जाए कि ख के कारण ने ख को ऐसे रूप में उत्पन्न किया कि वह क की उपस्थिति में नष्ट हो तो कहना यह हुआ कि ख के कारण का क के प्रति अनुचित पक्षपात है ।
यस्मात्तस्याप्यदस्तुल्यं विशिष्टफलसाधकम् । __ भावहेतुं समाश्रित्य ननु न्यायान्निदर्शितम् ॥४२३॥
क्योंकि हम युक्तिपूर्वक दिखा चुके कि उक्त आक्षेप प्रस्तुतवादी की इस मान्यता पर भी लागू होता है कि एक वस्तु (एक दूसरी वस्तु पर निर्भर रहती हुई) एक विशिष्ट (अर्थात् अपने से विसदृश) कार्य के जन्म का कारण बनती है ।
टिप्पणी-पूर्वोक्त टिप्पणी की भाषा में, यदि क ने ख में किसी प्रकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org