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शास्त्रवार्तासमुच्चय अर्थात् उत्पन्न होते ही नष्ट हो जाना-प्रत्येक वस्तु का स्वभाव है उसका यह भी कहना है कि यह प्रश्न उठाना कोई अर्थ नहीं रखता कि एक वस्तु में पाई जाने वाली क्षणिकता का अर्थात् उत्पन्न होते ही होने वाले इस वस्तु के नाश का–कारण क्या है । 'नाशनिर्हेतुकतावाद' का सीधा अर्थ यही है लेकिन हरिभद्र को यह वाद त्रुटिपूर्ण लगता है जिसका मुख्य कारण यह है कि उनके अपने मतानुसार प्रत्येक वस्तु का स्वभाव क्षणिकता नहीं अपितु क्षणिकता संवलितनित्यता है।
हेतुं प्रतीत्य यदसौ तथा नश्वर इष्यते ।
यथैव भवतो हेतुर्विशिष्टफलसाधकः ॥४१६॥
क्योंकि हमारे मतानुसार एक वस्तु किसी कारणविशेष पर निर्भर रहती हुई नष्ट होती है-उसी प्रकार जैसे कि प्रस्तुतवादी के मतानुसार वही वस्तु इसी कारण पर निर्भर रहती हुई एक विशिष्ट (अर्थात् अपने से विसदृश) कार्य को जन्म देती है।
टिप्पणी-जिस वस्तुस्थिति को सामान्यतः यह कहकर व्यक्त किया जाता है कि "क के कारण ख नष्ट होकर ग हो गया (उदाहरण के लिए, डण्डा लग जाने के कारण घड़ा टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो गया)" उसे क्षणिकवादी यह कहकर व्यक्त करेगा कि "क के कारण ख ने ग को जन्म दिया और ग ख से विसदृश है (यदि क न आया होता तो ख ने ख' को जन्म दिया होता और ख' ख के सदृश होता)" इसके विपरीत, हरिभद्र इसी वस्तुस्थिति को यह कहकर व्यक्त करेंगे कि 'क के कारण ख का विनाश हुआ तथा ग का जन्म हुआ।"
तथास्वभाव एवासौ स्वहेतोरेव जायते ।
सहकारिणमासाद्य यस्तथाविधकार्यकृत् ॥४१७॥
प्रस्तुत वादी के मतानुसार एक वस्तु अपने कारण से ही ऐसे रूप वाली होकर उत्पन्न होती है कि वह सहकारिकारण की उपस्थिति में उक्त प्रकार के (अपने से विसदृश) कार्य को जन्म देती है ।
टिप्पणी पिछली टिप्पणी की भाषा में रखा जाए तो क्षणिकवादी का मत है कि ख अपने कारण से ही ऐसा स्वभाव लेकर उत्पन्न हुआ था कि वह क की उपस्थिति में ग को जन्म दे । वस्तुस्थिति को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कहा जा सकता है कि घड़े के दृष्टान्त में ख का अर्थ होगा
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