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अनजानी - सी है । फिर भी क्योंकि शास्त्रवार्त्तासमुच्चय के अधिकांश भाग में— प्रायः पूरे ही ग्रंथ में — हरिभद्र अपने विरोधी दार्शनिक सम्प्रदायों की आलोचनात्मक समीक्षा में उसी प्रकार व्यस्त हैं जैसे तत्त्वसंग्रह के अधिकांश भाग में शान्तरक्षित, इन जैन-बौद्ध आचार्यों के मौलिक दृष्टिकोणों के बीच प्रस्तुत अन्तर को एक छोटा अन्तर ही मानना उचित होगा । अस्तु ।
शास्त्रवार्त्तासमुच्चय की विषयवस्तु का सिंहावलोकन करने के पूर्व एक बात स्पष्ट हो जानी चाहिए और वह यह कि सामान्यतः एक दार्शनिक कृति की प्रतिपाद्य विषयवस्तु क्या हुआ करती है । दो शब्दों में कहा जा सकता है कि एक दार्शनिक कृति में प्रतिपादन पाया जाता है वस्तु जगत् के चरम स्वरूप का तथा मनुष्य के चरम करणीय का, अतएव हम देखते हैं कि शास्त्रवार्त्तासमुच्चय में इन दोनों ही - तथा इन्हीं दो समस्याओं से संबंधित प्रश्नों को यथावसर उठाया गया है । * एक जैन होने के नाते हरिभद्र समझते थे कि मनुष्य का चरम करणीय है मोक्ष की — अर्थात् पुनर्जन्म चक्र से मुक्ति की — प्राप्ति और उनके सौभाग्य से इस प्रश्न पर उनका मतैक्य प्राचीन भारत के सभी दार्शनिक सम्प्रदायों के साथ था— यदि चार्वाक भौतिकवादियों को इस सम्बन्ध में अपवाद मान लिया जाए। लेकिन जिस मोक्ष की प्राप्ति को एक ओर हरिभद्र का जैन सम्प्रदाय तथा दूसरी ओर प्राचीन भारत के चार्वाकेतर सभी दार्शनिक सम्प्रदाय मनुष्य का चरम करणीय मानते थे उसके स्वरूप के संबंध में इन सम्प्रदायों के परस्पर मतभेद नगण्य न थे; यह इसलिए कि इन मतभेदों के मूल पर विद्यमान थे वे मतभेद जो इन सम्प्रदायों के बीच उठ खड़े हुए थे वस्तु जगत् के चरम स्वरूप के प्रश्न को लेकर । इस प्रकार यद्यपि मोक्षवादी सभी दार्शनिक सम्प्रदाय बंध तथा मोक्ष का भागी एक स्वतंत्र चेतनतत्त्व को मानते थे— और यही मान्यता उन सब को चार्वाक भौतिकवादियों से पृथक् करती थी— लेकिन यह चेतन तत्त्व परिवर्तनशील है अथवा अपरिवर्तनशील, एक है अथवा अनेक, इस चेतन तत्त्व से अतिरिक्त कोई भौतिक तत्त्व भी है अथवा नहीं और यदि है तो इन चेतन तथा भौतिक तत्त्वों के बीच सम्बन्ध क्या है, आदि प्रश्न इन सम्प्रदायों को परस्पर विरोधी शिबिरों में बाँटे हुए थे । प्राचीन भारत के दार्शनिक रंगमंच की इस
★ जैसा कि हम आगे प्रसंगवश देखेंगे, एक दार्शनिक कृति का एक अन्य संभव विषय है ज्ञान - साधनों का चरम स्वरूप, लेकिन इस विषय को शास्त्रवार्त्तासमुच्चय में नाममात्र के लिए ही छुआ गया है ।
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