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एसा मह पाणपिया धूया निय-जीवियस्स अब्भहिया। लक्खण-छंद-कलाओ जाणावह थोव-दिवसेहिं ।।२०९।। इय नच्चंत-विलासिणि-वजंत-सुसद्द-गहिर-तूरेहि। चिंतामणि व्व बाला ओज्झा-सालाए संपत्ता।।२१०।। इय भरुयच्छ-नयर-निवेसिय-सिरि-संवलिया-विहारस्स सुदरिसणा-चरिए सुदरिसणा-जम्मुप्पत्ति-वण्णणो नाम दुइओ उद्देसो सम्मत्तो।।२।।
पुव्व-भव-संभरणो नाम-तइओ उद्देसो
अण्णम्मि दिणे सामंत-मति-भड-विउस-जुवइ परियरिओ। राया सुहासणत्थो विण्णत्तो सुयणु ! विजयाए।।२११।। सो देव च(२८ब) रो वेलाउलाउ सिहराउ रयण-सेलस्स। पहसिय-वयणो तुह दंसणुच्छुओ चिट्ठइ दुवारे।।२१२।। 'नरवइणा भणियं मा खलेह सो मज्झ पवहणागमणं। साहेइ गरुय-प(प्प)साय-कंखिओ आगओ एत्थ।।२१३।। लद्धाएसाए सो मयच्छि! पडिहारियाए विजयाए। उववे(?ए)सिओ पणामं करेवि रायस्स उवविठ्ठो।।२१४।। विण्णवइ चरो नियमेण तुज्झ नरनाह! रयणगिरि-सिहरे। निवसामि सया साहेमि तह य तुह पवहणागमणं ।।२१५ ।। संजाण-मिस्सामगर(?)-बब्बर-कूला पवहण-सयाई। (२९अ) आवेंति पवाला पट्टसुत्त-बहु-भंड-भरियाई।।२१६ ।। सिक्कोत्तर-दीवाए तेज-कोसियारओ-दक्ख-मंजिट्ठा। खजूर-नित्त-भरियाई पवहणाइं पहुप्पंति।।२१७।।
१. नरवयणा.
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