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________________ १६२ ७६. मुत्तावलि (मुक्तावलितप)-१३८५. मुत्तिसुह (मुक्ति-सुख)-८७. वेयावच्च (वैयावृत्य )-१९. मोक्ख/मुक्ख (मोक्ष)-६६, ६७४, संका (शंका) -३३, १५५६. १२४५, १२४६. संजम (संयम) ११८८. मोहणियकम्म (मोहनीय कर्म)-४९१, संवर (संवर)-४३४, ६९१. १४०२. संवेगकरीकहा-७६. रयणावलि (रत्नावलि तप)-१३८४ सक्कत्थव (शक्रस्तव)-७०७. रयणिभोयण (रजनी भोजन)-६८२. सचित्त (सचित्त)-७०५. रागदोस (राग-द्वेष)-१२४५, १५६१. सज्झाय (स्वाध्याय)-४२९, ७१२. रोहिणि (रोहिणितप)-१३८३. सत्तच्छित्त (सप्त क्षेत्र)-१२००. रोद्द/रुद्दज्झाण (रोद्र-ध्यान)-४६, सत्तरसविह संजम (ससदसविध १२४३. __ संयम)-४२७, ग-१२. लहुकम्म (लघु-कर्म)-८०. सयमेव बुद्ध सिद्ध (स्वयमेव बुद्धसिद्ध)लेस्या (लेश्या)- ग. १२ ६८६ लोयालोय (लोकालोक)-१२१९ सलिंग सिद्ध (स्वलिंग सिद्ध)-६८६. वणसइकाय (वनस्पतिकाय)-६३७, सव्वंग सुंदर (सर्वांगसुंदर तप)-१३७८. ६८४. सव्वओभद्द (सर्वतोभद्र तप ) १३८४. वय (व्रत)-१४५१. सव्वण्णु (सर्वज्ञ)-३३४. वसुदेव (वसुदेव)-९९८. सामाइय (सामायिक)-६९०, १४२२. विजिगिच्छा (विचिकित्सा)-१५५६ सावज्जजोग (सावद्य-योग)-१११८. विमलनाण (विमल-ज्ञान)-९७२, सावय धम्म (श्रावक धर्म)-७२१. १२१९ सासयसुहासोक्ख (शाश्वत सुख) - वियाल (विकाल) -७११ ६६८, १३७५, ग-१२, विरइ (विरति)-४९०, ५९२. १५६१. वीयराय (वीतराग)-४१. साहु (साधु)-१४१३ वेक्खेवकरी कहा (विक्षेपणी कथा)- साहम्मियवाच्छल (साधार्मिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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