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________________ देव पाचक ! १९ देव प्रणत- विबुध-पति- शिरोमुकुट-कोटि- नानावर्त - रुचिर-रत्न कर - निकर कर्चुरित पवित्र पादारविन्द ! २० १. - १४६ - देव भक्तिभरोल्लसिताङ्ग- गीर्वाण-मुख - कमल - विनिर्गत सद्वचो निष्ठुत-निर्मल- गुणरत्नसमुद्र ! २१ स्वर्गापवर्ग-प्रदर्शनैक-सकलसत्त्व-हित-विहित - धर्मोपदेश ! २२ देव ( २३२अ ) .... देव अरूए (?) २४ देव सर्वीय (?) २५ देव सर्वोत्तम ( ? ) २६ देव सर्व सुख - सिद्धि (२३२ब) कारण ! २७ देव अविनाश्यपवर्ग-पुर-राज्य - कमलालङ्कितोरस्क २८ इत्येवं श्रीमदरिष्टनेमि - जिन - पादपङ्कज विमलं भवतो भावेन मया स्तुतं विभोः श्रेयसे भक्त्या । - सावत्तिम. भव्य - भवि - काव्य-बन्धन योजनजगतां जिनेन्द्र जगदीश । निर्वाणराज्य सौख्यैः प्रसीद सद्यः प्रसन्नाक्षः । । १६०५ ।। Jain Education International थुणिऊण जिणवरिंदं विहिणा सामाइयं करेऊण । उज्जतें नेमिजिणो सयाउ कुणइ धणपालो । । १६०६ ।। इय भरुयच्छ-नयर - निवेसिय- सिरि-सवलिया - विहारस्स सुदंसणाए चरिए चंपयलया - किन्नरी - नियाण-बंधो नाम बारसमो उद्देसो सम्मत्तो । । छ । । इय एवं देवि सुदंसणाए चरियं जहासत्तीए मंदमइणा... ।। श्री ।। ***** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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