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________________ १४५ तद्यथा देव त्रिभुवनतिलक ! १ देव त्रिभुवनावनीय ! २ देव त्रिभुवनोद्धरणैक-महास्तंभ ! ३ देव विमल-हरिवंश-कुल-कुमुदकुड्मलावबोधनैककार्तिकी-चन्द्र-मण्डल ! ४ देव दश-धनुर्दण्डमा ! ५ देव अमान ! ६ देव तनुतर-विभव-परित्यक्त-सकलराज्य-कमल ! ७ देव निर्विशेष सुरासुर मदन-द्विरदोपकुम्भस्थलास्थि-विदारणैकपञ्चानन! ८ देवतीव्रतर-तपोदहन-ज्वालावली-विनिर्दग्ध-दुष्टकर्माष्टक-वलमहता!९ देव (२३१अ)ज्वलित-संज्वलनककषायानल विद्रवणैक-महाजलधर ! १० देव स्फूरदमल-केवलज्ञान-रत्न-प्रभा• प्रकाशित-जीवाजीवादिपदार्थ-सार्थ ! ११ ।। देव सचकित-भव्य-जन्तु-सङ्घात-प्रकटित-परम-तत्त्व ! १२ देव सजल-जलधर-ध्वनि-समान-शब्द प्रबोधित-सकल-जीव-सङ्घात ! १३ देव निर्वाण-पुर-मार्ग-प्रदर्शनैक-विश्रान्त-प्रज्वलित-महादीप ! १४ देव बहलतर-मिथ्याज्ञान-तमः पटल-निबिड-पुट पाटनैक-प्रभाकर ! १५ देव अत्यन्त दुःखाकीर्ण-नरक-नगर-गोपुर-निरोधनैक-दृढ-कपाट ! १६ देव अगाध-संसार-पाथोधि क्रोड-निमजजन्तु-सन्तानोत्तारणैक प्र(२३१ब) गुण यानपात्र ! १७ देव पवित्र ! १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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