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१४३ (२२९अ) तम्मोह-मोहिय-मई भारह-खेत्ते जिणिंद-तित्थेसु। मणुयत्तं संमत्तं अलहंती सा परिब्भमइ ॥१४८८ ॥ अज दिणे य भाऊय ! सिरि-नेमि-जिणिंद-वंदण-निमित्तं । इह संपत्ता सा हूं कहाणयं इत्तियं मज्झ।। छ ॥१५८९ ।। ता सकयत्था मणुया दुलहं जिण-सासणं लहेऊण। निच्चल-सम्मत्त-जुया चउब्विह-धम्म पकुव्वंति।।१५९० ।। साहीणे मणुयत्ते लद्धे तह दुल्लहम्मि जिण-धम्मे। जस्स न दिढ सम्मत्तं विडंबिओ तेण निय-जम्मो।।१५९१ ।। मणुयत्ते जिण-धम्मे लद्धेवि मए नियाण-दोसेण। साहीणं मोक्ख-सुहं गमेवि किन्नर-पयं गहियं ।।१५९२।। अहवा जे भाउय ! दुकय-भा(२२९ब)यणो हुति मज्झ सारिच्छा। दाऊण महारयणं किणंति कच्चं अहमातो।।१५९२।। तो जिण-धम्मं काउं नियाण-बंध करेइ जो मूढो। सो भाऊय! मह सरिसो कोडीए कागिणी किणइ।।१५९४ ।। जम्हा एगो वि जिणे भाव-पणामो हरेइ भव-वासं। जह दुग्गय-नारीए पत्तं भावेण देवत्तं ।।१५९५ ।। ता भाउय! तेण नियाण-बंध-दोसेण भरहवासम्मि। एणं सुभाव-धम्मं कुणमाणी परिभमामित्थ।।१५९६ ।। एयं च मए समूलं सम्मत्तं जुयस्स नेह-नडियाए। तुह साहियं सहोयर सुदंसणा-देवि-मह-चरियं ।।१५९७।। अहमवि ता वच्चामो भरुयच्छे सवलिया-विहारम्मि। अ(२३०अ)इकमइ पिच्छणारंभ-काल-समओ य मह तत्थ।।१५९८॥ पिच्छह तुम पि वरो न निप्फलं देवदंसणं होइ। अह एयं देवि-सुदंसणाए चरियं करिजासु।।१५९९।। तुज्झ भवे सइसत्ती देवीएँ सरस्सई पभावेण।
भणिऊण इमं सा सुयणु ! किन्नरी गयणमुप्पइया।। छ ॥१६०० ।। १.. परिभवामि. २. पिच्छणोरंभ.
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