SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ एगे वरपावरणा भवणंते परिवसंति सिसिरम्मि। अन्ने हत्थावरणा वीणा वायंति दंतेहिं।।१५७६।। अवि यजोडिय-कर-चरण-जुया 'सिवं सिवं(२२८अ) पोक्करंति सकुटुंबा। परम-माहेसरा इव सिसिरे दारिद्दिआ दीणा।।१५७७।। एगे गति वर-जुवइ-चाडु-संजणिय-विविह-मण-भावा। अन्ने कु-घरणि-'दुव्वयण-दुम्मिया अट्ट-ज्झाणेण।।१५७८ ।। एगे चएवि रजं गिण्हंति महा-तवं महासत्ता। अण्णे पुण रत्ता खप्परं पि' न मुयंति गुरुमोहा।१५७९।। एगे धम्माभिमुहं करंति पडिबोहिऊण भविय-जणं। अण्णे पावासत्तं अत्ताणं चिय न वारंति।।१५८० ।। इय धम्माधम्म-फलं दंसइ नरनाह ! एत्थ पच्चकखं। परिभाविऊण एयं करेह जिण-देसियं धम्म।।१५८१।। सुणिऊण साहु-वयणं भाऊय! सो महसेन नरनाह। जिण-दिक्खं पडिवण्णो(२२८ब)परिचत्त-परिग्गहारंभो।।१५८२।। कालेण दोवि ते खविय-कम्मुणो मुणिवरा सुज्झाणेणं। मरिऊणाणुत्तर-सुरविमाण-वासे सुहं पत्ता ।।१५८३ ।। चंपयलया वि भाउय ! मोहेणं सुदंसणाए देवीए। भश्यच्छे जिण-भवणे संपत्ता पाउयारूढा।।१५८४ ।। अणुदियहं मुणिसुव्वय-जिणस्स पूयं "विहीए कुणमाणी। कालं गमइ सरंती सुदंसणा-देवि-पय-कमल।।१५८५।। एवं सा चिर-कालं अच्छंती जाणिऊण निय-मरणं। चिंतइ जिण-पूयाए जइ किं पि फलं जए अत्थि।।१५८६।। अहमवि ता देवत्तं सुंदसणाए पयं च वच्चामो। काउं नियाण-बंधं मरेवि सा किन्नरी जाया।१५८७।। १. सियसियं. २. पोक्खरंति. ३. पुव्वयण. ४. रत्था. ५. ति. ६. पुरिसदत्त. ७. विहिय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy