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११६ काउं संति-विहाणं सिला-निवेसं करेवि सुमुहुत्ते। पूएवि सुत्तहारं पारद्धं जिणहरं तुंगं।।१३०७ ।। पारद्धे जिण-भवणे विसेसओ निव-सुया वि गंतूण। जिण-ण्हवणऽच्चण-विहिणा पइदियहं मंगलं कुणइ।।१३०८।। दीणाणं दुत्थियाणं बहु-दाणं देइ पूयए संघं। वाहि-गहियाण किरियं करावए ओसहं देइ।।१३०९।। (१९२ब)घोसावेइ अमारि सव्वत्थ वि दुहिय-सव्व-जीवाणं। अण्णं पि धम्म-कजेसु संगयं कुणइ भावेण।।१३१०।। बहु-भक्ख-भोज-तंबोल-पुप्फ-वत्थेहिं णिव-सुया णिच्वं । विण्णाणिय-कम्मारा तोसेहिं तहा पसंसेइ ।।१३११।। भणियं च धम्म-कज्जे णिबद्ध-मोल्लस्स तह विसेसेण। अहि(य)यरं दायव्वं जेण पसंसेइ सव्वो वि।।१३१२।। एस पसंसा-धम्मो दूहवियव्वो न कोवि कइया वि। जत्थ दयाए पसंसा तत्थ सुहं सासयं भणियं ।।१३१३ ।। (१९३अ)एवं कमेण सुहया वोलीणा जाव सुयणु ! छम्मासा। णिव्विग्धं जिण-भवणं निप्पण्णं ता महा-तुंगं।।१३१४ ।। तं च केरिसं ? फालिम-सिला-निबद्धं भूमितलं जस्स गाऊय-पमाणं। नजइ रायसुयाए निच्चल-सम्मत्त-रयण व्व।।१३१५ ।। चउपास-निवेसिय-पिहुल-दीह-फलिहमय-तुंग-पायारं। कणयमय-मयर-तोरण-निवेसियं उत्तराहिमुहं ।।१३१६।। हेममय-पट्ट-निम्मिय-नाणा-मणि-रयण-जडिय-सुकवाडं। संजविय-लोहमय-दिल-भुयग्गल-जंत-कय-विसमं ।।१३१७ ।। चउपास-बद्ध-पीढं कंचणमय-रइय-निच्चल-सुवाणं। दिप्पंत-चंदमणि-जडिय-थंभ-सह भूसियंव रम्मं ।।१३१८ ।।
१.
अमारे. २. मोल्लस. ३. त्थंभ.
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