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सोमं (१९०-ब) थिरं विसालं पावहरं जो करेइ जिण-बिंबं । अमरच्छर-परियरिओ सो निवसइ देव-लोगम्मि ॥१२८४ ।। सुइ-सुय-चित्तो भत्तीए सुरहि-कुसुमेहि करेइ जो पूयं । सो सुरहि-कुसुम-माला-विहूसिओ सयल-सुर लोए।।१२८५।। बलि-जत्ता-पेच्छणयं करेइ उवइसइ अह पसंसेइ। संथुणइ करइ गेयं सो थुव्वइ किन्नर गणेहिं।१२८६ ।। जो देइ जिणवराणं कुंडल-केऊर-हार-तिलयं च। सो सुरलोए निवसइ मणि-रयणाहरिय-वर-देहो।।१२८७।। भिंगारारत्तिय-कलस-दीव-धूडहण-संख-जयघंटा। जो देइ जिणाययणे(१९०/१अ) महिडिओ सो सुरो होइ।।१२८८।। काहल-हुडुक्क-ढक्का-भायण-कंसाल-वीण-वर-वंसा। जो देइ अहव वायइ तस्स पुरा गिज्जए गेयं ।।१२८९ ।। धय-छत्त-चिंध-चामर-विचित्त-चंदोवयं च जो दे। धय-छत्त-विहिय-सोहो सो सिय-चवरेहिं विजियइ।।१२९० ।। अह जिण-भवणे बिंबं पमजए निद्धणो वि भावेण। संथवण-गेय-णटुं करेइ अणुमोयइ परं वा।।१२९१ ।। लहिऊण परम-बोहिं रजं भोत्तूणं सयल-भरहम्मि। सो पावइ मुत्ति-सुहं अट्ठ-भवन्भंतरे णियमा।।१२९२।। कायव्वं सव्वमिणं विहिणा काले सुवत्थु-पडिपुण्णं। जिण-भवण-बिंब-पूयाइयं च जयणाए सविसेसं।।१२९३।। (१९०/१ब) एयं तुह साहीणं सव्वं पि कमेण जह मए कहियं। ता तह करेज विहिणा सिव-सुह-जणयं जहा होइ।।१२९४ ।।
।। इम भरुयच्छ-नयर-निवेसिय-सिरि-संवलिया-विहारस्स सुदंसणा-चरिए पुव्व-भव-परिचिय-महा-मुणि-दंसणो जिणभवणोवएस-वण्णणो नाम नवमो उद्देसो सम्मत्तो ।
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