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________________ ९४ व य एसो जियसत्तु णिवो तुह 'पिउणो चंदउत्त-रायस्स। णिवसइ सया ससंको जाणइ किं एस सो पत्तो।।१०५५ ।। तेणेसो तुह जय-तूर-गहिर-धोसं सुणेवि सण्णद्धो। वेलाउलम्मि संगर-समुच्छुओ सुयणु ! संपत्तो।।१०५६।। तव्वयण(१६०अ)मुणिय-कजाए जंपियं झत्ति रायधूयाए। जइ एवं ता गंतुं तुरियं साहेह वुत्तत्तं ।।१०५७।। लद्धाएसो सेट्ठी एगाए खरुक्कियाए चडिऊण। अत्ताणं पयडतो पत्तो जियसत्तु-पयमूले।।१०५८।। दूराउ कय-पणामो आगमणं नि(१६०ब)व-सुयाए साहेवि। जा णिव्वेयइ कजं ता पत्तं पवहण-समूहं ।।१०५९।। अवि यणिजामयस्स वयणेण कोवि पट्टि खलइ पवहणं गंतुं। अन्नो लंबेइ सिढं अन्नो संवरइ हरिणीओ।।१०६०।। अण्णो वि लोहमइयं अहोमुहं खिवइ(१६१अ)णंगरं झत्ति। अहवा णु लोहमइओ अहोमुहं पडइ अण्णो वि।।१०६१।। अट्टालयाउ जंतं उत्तारइ को वि कय-बहु-पसाओ। अण्णो वि रायधूयं वद्धावइ गुरु पसायमुहो।।१०६२।। इय कय-मंगल-सद्दा उत्तरिया पवहणाओ णिवधूया। सीलवईए सहिया आरूढा सुहय-जंपाणे।।१०६३ ।। उच्चरिय-णाम-सुत्ता थुव्वंती बंदिवंद-सु(१६१ब)कइहिं। दाणं दिती पत्ता जियसत्तु-नरिंद-पासम्मि।।१०६४।। दूराओ च्चिय राया वियाणियागमण-सयल-वुत्तंतो। साचारं परितुठ्ठो सुसागयं कुणइ बालाए।।१०६५।। तह चिर-विओय-संजणिय-दुक्ख-निद्दलण-जाय-परिओसो। सीलवई भाइणेई परिओसइ सायरं राया।।१०६६।। १. पियणो. २. उत्तरियं. ३. बंदिवंदि. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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