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भणियं च जिणागमे
जो सुद्धेणं भत्त-पाण-वत्थो सहाईएण काल-खित्तसुद्धीए तक्कालुप्पण्ण हरिसवस-विसङ्घमाण-कंदोट्ट-णयण-विसुद्ध-मणभावो पडिलाहेइ मु(१५०ब) णिवरे तस्स अप्पो वि णत्थि बंधो केवलं णिज्जरा।
जो पुण काल-खेत्त-दोसेण सुद्धमलहंतो असुद्धेणावि भत्तपाणवत्थोसहाइदाणेण सुद्ध भावो पडिलाहेइ मुणिवरे तस्स अप्प बंधो बहुतरा णिज्जरा। गद्यखंड-५
(१५१अ) अण्णं च पुणो छुह-पीडियाण दारागयाण दुहियाणं। पत्तापत्तेसु सया करुणा-दाणं पि दायव्वं ।।१००६।। अवि यणिजरकरं सुपत्ते करुणाए दुत्थियाण रिद्धिकरं। पाव-कम्मे उविक्खा सुधम्म-कुसलेण कायव्वा।।१००७।। मुदा । करुणा । उपेक्षा ।। अविय दव्वत्थ-गव्व-परियण-भयाणुकंपोवयार-पावत्थं । लज्जा-भय-धम्मत्थं च दसविहं दाणमुदिह्र।।१००८।। एयाणं च पहाणं धम्मस्थं जं सया सुपत्तेसु। दिजइ दाणं तं होइ कारणं सासय-सुहाणं।।१००९।। अण्णं चजाइ-कुल-सील-सुय-गुण-बल-रूय-सहाय-वज्जिओ जइ वि। (१५१ब)दाणं दितो पुरिसो होइ सुराणं पि थोयव्यो।।१०१०।। णासंति आवईओ अगुणस्स वि होति गुण-समिद्धीओ। दाणं दितस्स णरस्स होइ सत्तू वि लहु 'मित्तो।।१०११।। पुहइवई सूरो पंडिओ वि वेजो वि अहव जोइसिओ। दाणं दितस्स हवेइ तक्खणा विणइ भिच्चु ब्व।।१०१२ ।। पिय-मित्त-सत्तु-बंधव-पुत्त-कलत्ताइ सयल-सुयण-जणो।
सुसिणेहो होइ खणे दाणं 'दितस्स पुरिसस्स।।१०१३।। १. सहाएईएण. २. दव्वच्छ. ३. पावच्छ. ४. मेत्तो. ५. दित्तस्स.
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