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अवि यकत्थइ मत्त-गइंदो करहारूढं च पाडए थे। अण्णो वि रह-वराओ उल्लूरइ चिंध छत्ताई।।८०४।। मत्त-गय-सद्द-तट्ठो करहो तासेइ कत्थइ बइल्लं। करहारट्ठिय-पणट्ठ-कंठालं पाडइ बइल्लो।।८०५ ।। नट्ठ-बइल्लेण खरस्स पाडियं लगडयं व दणं। वाहरइ रंधणी हा हया स मारेसि कुक्कुडओ।।८०६।। सा चोवण्णस्स खरस्स लगडयं मच्छरेण पाडिवि। जंपइ न मए संपइ सहाइणी मह तुमं जाया।।८०७।। (११७अ) जर-जजरिय-सरीरा सीय-केसा पडिय-दसण-लुय-णासा। उच्छुट्ट-टार-कय-पेट्ट-पट्टया कुट्टणी रडइ।।८०८।। इय एरिस गुरु-कलयल-रवेण रयणगिरि-सेल-नियडम्मि। निय-परिवार-समेओ पत्तो वेलाउले राया।।८०९।। सव्वो सव्वत्थ सुवित्थरेण सुपएस कय सुहावासो। गुड्डर-गुलिणीया मंडवेहिं आवासिओ लोओ।।८१०।। एत्थंतरम्मि णिज्जामएण 'पत्थाव(११७ब)मुवगयं सहसा। विण्णत्तं पहु ! पउणी कयाइं वर-पवहण-सव्वाइं।।८११।। सुणिऊण तस्स वयणं नरनाहो उसहदत्त-धणवइणो। मुत्तूण सव्व-दाणं परं परिपाहुडं देइ।।८१२।। वर-रयण-कणय-कप्पूर-वत्थ-हरिचंदणाइ-दाणेहिं। तं पूइऊणं सिढि समप्पिया तस्स निय-धूया।।८१३।। मंकणय-नेत्तपट्ट-णियवत्थ-दोछडियं-पडियं-पट्टाणं। एगं सुपवहण-सयं भरियं धूया-कए रण्णा।।८१४।। (११८अ) अण्णम्मि पवहण-सए कप्पूर-सुमयणनाहि-भंडाइं।
कुंकुम-कालागुरु-सुरहि चंदणं राइणा खित्तं ।।८१५।। १. पत्थाववमुगयं. २. सव्वाई. ३. हरिंदणाइ.
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