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६७ वियसंति ससि-करा(१०९ब)सासियाई कुमुयाई लद्ध-विहवाई। पहु-दसणेण अहवा पावइ सव्वो वि चिर-रिद्धी।।७५६।। इय एरिस-रयणि-समागमम्मि देवीए चंदलेहाए। गुरु-मोह-मोहियाए सुदरिसणा सायरं भणिया।।७५७।। कुल देवयाए दिन्ना मज्झ तुमं पुत्ति ! गुरुय-पुण्णेहिं। ता मा कुण उव्वेयं मणोरहे सुयणु ! पुरेह।।७५८ ।। अज वि न तुमं सुवयंसियाहिं सह विउल-भवण-रच्छासु। दिट्ठा मए किसोयरि ! 'कंदुय-(११०अ)-कीलाए कीलंति।।७५९ ॥ अज वि कय-सिंगारा न मए दिट्ठा वसंतमासम्मि। पिय-सहयरीहिं सहिया मजण-जल-भिण्ण-मुह-सोहा।।७६० ।। अज वि न मए परिणयण-लच्छि-वच्छंकिया ससिंगारा। दिट्ठा दाणं दिती [न] 'थुव्वंति बंदिविंदेहि।।७६१।। ता मा वच्चसु वच्छे ! एयं सव्वं पि तुज्झ साहीणं। अण्णं पि जं दुसझं तं सव्वं सुयणु ! साहेमि।।७६२।। भणियं(११०ब) सुंदसणाए ‘मणुयत्तं जइ वि सव्व-गुण-कलियं। जिण धम्म-वजियाणं निरत्थयं रणं-कमल व्व।।७६३।। अवि यअसुइ-विलित्त-सरीरो पय-पाणाउलिय-वयण-दुग्गत्तो। मच्छीहिं भणिभणितो कह धम्म कुणइ बालत्ते ।।७६४।। विसयासत्तो रत्तो कामासत्तो सुभोय-गय चित्तो। पर-धण-दारासत्तो विस(१११अ)य-महाजलणं संतत्तो।।७६५ ।।
णव जोवण-मयमत्तो संसार-दुक्खमगणंतो। अलहंतो विरइ-सुहं कह धम्मं जोवणे कुणइ? ।।७६६।। विद्वत्तणे वि बालुव्व वयण-लालावगुंडिय-सरीरो।
जंपइ लल्लविलल्लं गय-दंतो कंपियावयवो।।७६७ ।। १. कंदूय. २. थुवंती. ३. ण्णव. ४. जोइण.
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