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कत्थइ महुरालावा महुरं वाहरइ परहुया सुवणे। गंधव्विणि व्व कंदप्प-राइणो गेयमुच्चरइ।।५०० ।। इय एवं देव ! वसंत मास-'सुह-मज्जणुच्छुओ लोओ। कय-सिंगारो चलिओ गायंतो चच्चरि-पयाई।।५०१।। (७२ब) सुणिऊण तस्स वयणं राया रइवल्लहम्मि उजाणे। कय-सिंगारो सह परियणेण पत्तो खणद्वेण ।।५०२।। कय-सिंगाराउ विलासिणीउ जा नियइ पमुइओ राया। ता सुरहि-गंध-वासिय-जलेण वच्छत्थले पहओ।।५०३ ।। अण्णा वि पोढ-जुवई हरिचंदण-बहुल-वासिय-जलेण। वंचेवि नीर-घायं हणइ निवं पडिपहारेण ।।५०४।। अण्णा वि समुक्खित्तेक्क-चलण-पडियं पि नेउरं हिट्ठा। सच्चवइ नेय सच्चवइ निय-पियं नीर-धाराहिं ।।५०५।। (७३ब) अण्णा वि वज-मणि-जडिय-कुंडलं निवडियं पि कन्नाओ। सच्चवइ नेय मजण-जलस्स गहणुच्छुया जुवई ।।५०६।। अण्णा वि जइ कुमारं गंधुद्धर-बहल-चंदण-रसेण। 'सीलवईए दइयं' भणेवि, वच्छत्थले हणइ।।५०७।। इय राया जावुक्खित्त-माणसो राय-मजणारंभे। विजाहरेण हरिया सीलवई कु(७३ब)मर-रूपेण।।५०८।। ता निजंती गयणे कुमार-संकाए खेयरं भणइ। परिहासो वि न जुत्तो अमुणिय-चल-चित्त-नारीणं ।।५०९।। ता मुंच लहुं मं जा न कोइ पेच्छइ इमाण मज्झम्मि। लज्जामि अहं निय-जणणि-जणय-सुवयंसियाणं पि।।५१०।। विजाहरो-ससंको जाणतो विक्कमं कुमारस्स। वेयड-पह(७४ब) मोत्तुं चलिओ रयणायर-प्पमुहं ।।५११।। जा पत्तो सो सभओ समुद्द-मज्झट्ठिए विमल-सेले।
ता करवाल-विहत्थो पत्तो पट्टीए लहु कुमरो ।।५१२।। १. सुहु. २. मज्जणच्छुओ. ३. गाइंतो. ४. पहं ये वार छ. ५. कुमार.
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