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कुल-देवयाए रयणीए संसियं 'कुवलयच्छि! तुह धूया। सव्वाण 'वंदणिज्जा हविस्सए साहुणी एसा।।४६४ ।। जम्म-दियहाउ लायण्ण-रूय-सोहग्ग-गुण(६६ब)समिद्धीए। नव-जोवण-सिरि-सोहं पत्ता कालेण सा बाला।।४६५ ।। दद्दूण नियय-धूयं राया चिंतइ इमीए धूयाए। अणुरूओ कोवि वरो पावेयव्वो कहं एत्थ? ।।४६६ ।। इय एवं वर-लंभो(६७)ववाय-चिंता-हुयास-संतत्तो। अवलोयइ राय-सुए जे जे विण्णाण-गुण-कलिए।।४६७।। चिंतइ विसण्ण-चित्तो जइ वि सउण्णाउ हुंति धूयाओ। तह वि गुरु-आवईणं पढम-पयं पंडियाणं पि।।४६८।। जइ कह वि बाल-भावे विअंगुला चरण-कर-विहीणा वा। काणच्छी कुजा पंगुला य जायाए किं ताए।।४६९।। (६७ब) अहवा संपुण्णंगा पावेयव्वो वरो वि कह सहसा । पत्ते वि वरे कत्तो निविग्धं होइ वीवाहो।।४७० ।। अहाच]निविग्धं जइ परिणिया दोसेहिं दूहवा होइ। अह सूहवा वि कहमवि सुहंकरा नेय सुय-रहिया।।४७१।। देसंतरं व वच्चइ भत्तारो अहव होइ वाहिल्लो। कालेण मरइ अह तो वयणिजाणं न पजंतो।।४७२।। (६८अ) भणियं च "बालत्तणम्मि ताओ भत्तारो जोयणम्मि रक्खेइ। विद्धत्तणम्मि पुत्तो सच्छंदाओ न नारीओ।।४७३ ।। पत्थावे संग-कुसंग-मंत-कुकहा-विणोय-रहियाणं। घर-कम्म-वावडाणं सइत्तणं होइ नारीणं।।४७४ ।। इय चिंता-गहिय-निवस्स(ओ)लग्गाए कुणाल-नयरीए।
आहवमलंगरुहो विजयकुमारो तहिं पत्तो।।४७५ ।। १. कुलवच्छि. २. वंदिणजा. ३. वियंगुला. ४. बालत्तणमि.
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