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________________ सिरिइंदहंसगणिविरयं पुणरवि कम्मनिवेणं आणीओ जो अ माणुसभवम्मि । गिहवइपुत्तो जाओ विक्खाओ सीहनामेणं ॥८११॥ तत्थ वि सग्मदसणसंजोगो जस्स मेलिओ गुरुणा । जेण कया तस्सेवा एगमणेणं बहुदिणाणि ||८१२।। जो जुठवणवयसोहिअअंगोवंगयसुचंगबाहुजुगो । विसएगरागरूवधररागसीहेण अग्घाओ ॥८१३॥ जो रजइ गीआइसु सुवेणुवीणाइझुणिविसेसेसु । जन्नित्ताण भमंति अ रमणीरमणीयरूवेसु ॥८१४॥ जस्स रसणा सुमहुराइसिणिद्धरसेसु सव्वया गिद्धा । मिगमय-घणसाराइसुरहिगंधे नासिआ लुद्धा ॥८१५॥ सुहफरिसाणि दुगुल्लाइआणि वत्थाणि जो अ परिधेइ । जस्स कलत्ते जो अणुराओ सो पुण कहिजइ किं ? ॥८१६।। तथाहिजणणी-जणया जेणं गिहाउ निक्कासिआ तहा सेसं । परिहरिअं च कुडुंबं पियाणुरत्तेगचित्तेण ॥८१७।। जंपइ अ जं पिआ तं चिअ सच्चं जं च कुणइ तं च हि । सेसमसच्चं अहि सव्वं जो अ इअ मन्नेइ ।।८१८॥ दासी-दासाइअपरियणो वि चत्तो अ लद्धपसराए । जस्स पिआए सच्छंदचारिणीए 'मयच्छीए ॥८१९॥ "अप्पवसवट्टिओ 'कंतओ तओ तीइ तक्खणेण कओ । पक्खालेइ निअंगं पइदिणमेसा निरासंका ॥८२०॥ कप्पूर-चंदणाइअविलेवणेहि विलिं.पइ सदेहं । परिधेइ सा सुकोमल निम्मलवत्थाणि विविहाणि ॥८२१।। भूसेइ सा विभूसणनिअरेहिं वासरम्मि निअअंगं । भुंजइ जं मणइट्ठं पडिभासइ जस्स सा देइ ।।८२२।। नड-विडपुरिसेहिं सा रमइ समणकामिएहि सच्छंदं । रंजेइ तहा वि पिअं निअमायाविणयवयणेहिं ॥८२३॥ जो मनइ तं भज्ज सई हि "देवयं व सीलवई । अन्नदिणम्मि परिक्खा किजइ तीए तओ जस्स ॥८२४|| कंचण वितह दोसं एसा उब्भाविऊण निअकंतं । पण्हिप्पहारपहिं आहणए रोसरत्तमुही ॥८२२।। . १. विषयैकरागरूपधररागसिंहेन आघ्रातः ॥ २. यन्नेत्राणि ॥ ३. मृगाझ्या ॥ ४. आत्मवशवर्तिकः ॥ ५. मान्तः ॥ ६. परिदधाति ॥ ७. देवतामिव ॥ ८. पाणिप्रहारकैः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002643
Book TitleBhuvanabhanukevalicariya
Original Sutra AuthorIndahansagani
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1976
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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