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सिरिदहंसगणिविरइयं
सो पाढो सौ धम्मो जमेरिसा साविआ वि परदोले । गहइ असम्भूय तह सया वि कुणइ परतत्तीओ || १२४७|| एसा न सुंदरा सुंदरी न सो सोहणी अ जिणधम्मो । इअ नयरलोअवगो 'वग्गो दोलगह होई ॥१२४८ || लोपण विगोविजंती रोहिणीआ पुराउ निग्गमइ । सरइ अ पिउहर विहवं हिअं च चिंतेइ जणणी ॥१२४९॥ बंधुजणस्स गउरवं 'झाइ परिअणस्स पूअणं वा वि । गुरुजणसामग्गीए गओ अ लाहो अहो ! जीए ॥१२५० ॥ * मुच्छम उच्छं गच्छंती निवडती पप पर दुहिआ । जा गामाणुग्गामं भिखाए भमइ मइमुक्का || १२५१ ॥ सुकुमालयाइ जीए पयजुअले भूअले चलंतीए । निज्जाइ सोणिअभरो फुडंतरेहे अहो ! दुक्ख ||१२५२ ||
अप्पच्चक्खाणावरणकसायवसेण देसविरईइ । भंसाओ सम्मत्तं परिचत्तं रोहिणीए उ ॥१२५३ ॥ मरिऊणं अपरिग्गहिअवंतरसुरेसु रोहिणी पत्ता | हं! महंतदुहसमूहाणऽववरिआ इमा जाया || १२५४|| तत्तो वि निग्गओ जो गओ जिओ एगकरणपमुहेसु । कत्थ वि हा ! जीहाप अभावओ दुक्खमणुभूअं ॥ १२५५ ॥ कत्थ वि जीहाछेआउ जेण सहिआणि तिक्खदुक्खाणि । भमिओ संसारमहासमुद्दमज्झम्मि जो बहुअं ॥। १२५६ ||
अह मोहनिवेण महंतमूढयापेअसीइ हत्थम्मि | तालं दाऊणं अट्टहाससहिपण इणमुत्तं ॥ १२५७|| कंते! एआइ महंतसाविआए सरूवयं दिहं ! | कंताए ताप उत्तं किं देवित्थ बत्तव्वं ? ॥१२५८ || जम्हा इमा वराई चउदसगुणठाणरूवसोत्राणे । सिद्धिमहासोहे पंचमं च सोवाणमारुहिआ ॥१२५९ ।।
देवेण उ ते वि निवाडिआ सहस्सक्ख - चक्किपुजा जे । सुरलक्खेहिं 'अक्खोहिआ असमसत्तवंता य ॥ १२६० ॥
१. व्यः ॥ २. ध्यायति स्मरति ॥ ३. मूर्च्छाम् अतुच्छाम् ॥ ४. मतिमुक्ता बुद्धिहीना ॥ ५. महादु:खसमूहानामपवरिका ॥ ६. एकेन्द्रियप्रमुखेषु ॥ ७ अक्षोभिताः असमसत्त्ववन्तः-असदृशपुरुषकाराः ॥
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