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लब्धिविजयकृत नेमिनाथ फाग स्तवन
रूपमती गुलि,
जांबवती पदमावती पदमिणि, घेर लिउ बिचमें निज देउर, भमरा भमें युं मोहणवेलि. रंगी० ९ गोरी गंधारी ओर राधा, चंदकला अति अं[चं]ग,
देउर - उर उरस्युं प्रति भीडी, प्यारो प्रभु लागत हि मोहि अंग. रंगी० १० एक खंडोखलि माहिं गिरावें, एक सिर नामें नीर,
एक भिंगार भरी उर छांटें, एक उडावे अनुप अबीर रंगी० ११ साठि लाख एक कोडि कलस भरि नवरायो - जिनराज,
आकुल ए अमरे नवि कीनो, कइसि तुम्ह करोगी अब आज रंगी० १२ सत्यभामा सुर बानि काने सुनि, ओर राधा रूखमण्य, पलव छोरि दिओ तुम्ह इनको, एहि करिणे अब कारूण्य. रंगी० १३ कीओ ब्याह सुनी अम्ह बयनां, सत्यभामा कहे साच, चकित थई ठाढो रह्यो आगें, मुखथी कछु न ही निकसी वाच. रंगी० १४ मान्यो मान्यो कहें बहु मानिनि, ओर ब्रजकी सब नारि, हरखित वदन भए गोविंदा, समुद्रविजय सिवादे परिवार रंगी० १५ गोद बिछाहि कहें सत्यभामा, गोविंद स्युं वारोवारे, वेगं विवाह करो जिनजीको फरि फरि लेउं तुम्हकी बलिहारी. रंगी० १६ सुरगजगामिनी भामिनी भामा, लघु भगिनी अनुरूप, इसी न काउ भुवनमिं कन्या, उरवसी सरस राजुल मंजुल नयन बयन हिं, उग्रसेन नृप सब गुणसागर नागरि एहिं मानुं मदनकी ए रति ब्याह मनाइ ब्याहनकुं चाले, नेमि यादव सवि प्राणीवध देखी रथ वाल्यो, परमपदभजन के वरसीदान देइ समझाइ, मातपिता दीख लीइं उजलगिरि आपें, राजुल सामि करें नेमिनाथ धिन धिन राजुलजी, सवि सतिआं दुक्कर दुक्कर कारक दोइहिं, जनमथी जे बाल ब्रह्मचार रंगी० २१ पुण्यकथा कहतां जिनजीकी, पावन भइ मेरी जीह,
सरूप. रंगी०
काजे. रंगी० १९ मनरंगि,
सुखसंगि. रंगी० २०
सिणगार,
लबधि कहे जिन नाम तुम्हारो, जा दिन सुणिएं तें धिन दीह. रंगी० २२ आणंदविजय लिखितं पुण्यार्थे.
(पत्र १, सुरतना डाह्याभाई मोतीचंदना संग्रहमांथी.)
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१७
धूअ,
भूय. रंगी० १८
साजे,
[जैनयुग, जेठ १९८४, पृ. ३५७-५८ ]
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